My apprenticeship.By Maxim Gorky. जीवन के पथ पर.
My apprenticeship.By.
Maxim Gorky.
जीवन के पथ पर.
लेखक : मेकसीम गोर्की,
* मैने देखा है कि सगे-सम्बन्धी एक-दूसरे से जितना बुरा व्यवहार करते है, उतना अजनबी भी नहीं कर पाते । एक-दूसरे की कमजोरियों और बेहुदगियों को जितना अधिक वे जानते है, उतना कोई बाहरी व्यक्ति कैसे जान सकता है ।
* सुखी दिन गुजर जाते है, अच्छे लोग गुजर जाते है...
* भाग्य, मेरे भाई, उस पत्थर की भांति है जो गले में बंधा रहता है । तुम उबरने के लिए हाथ-पांव मारते हो, और वह तुम्हें ले डूबता है....."
* "बिना लगाम के घोडा और बिना भगवान के भय का व्यक्ति, दोनो एक से है । भगवान के सिवा और कौन हमारा मीत हो सकता है ? व्यक्ति का सबसे बडा शत्रु है व्यक्ति ! "
* "छोड दो यह बिना अर्थ का धंधा, छोड दो ! चिडियां पकडकर विश्व में आज तक कोई आगे नहीं बढा ! अपने लिए कोई ठिकाना खोजो और दिमाग की समूची शक्ति से एक जगह जमकर काम करो । व्यक्ति का जीवन ईसलिए नहीं है कि उसे ओछी बातों में नष्ट किया जाए । वह भगवान का बीज है और अच्छी फसल पैदा करना उसका काम है ! व्यक्ति सिक्के की भांति है । यदी उसे ठीक ढंग से काम में लाया जाए तो वह अपने साथ और सिक्कों को भी खींच लाता है । क्या तुम जीवन को आसान समझते हो ? नही, वह एक कठोर चीज है, बहुत ही कठोर ! विश्व अंधेरी रात के समान है जिसमें हर व्यक्ति को स्वयं मशाल बनकर अपने लिए उजाला करना होता है । भगवान ने हम सभी को समान रुप से दस उंगलियां दी है, परंतु हर व्यक्ति दूर-दूर तक अपने पंजों को फैलाना और सभी कुछ दबोच लेना चाहता है । अपनी शक्ति दिखानी चाहिए, यदी शक्ति नहीं है तो चालाकी दिखाओ । जो बडा नहीं, बलवान नहीं-वह न तो स्वर्ग में पहुंचेगा, न नरक में । लोगों के साथ मेल-जोल रखना, परंतु यह कभी न भूलना कि तुम अकेले हो । बात सबकी सुनना, परंतु विश्वास किसी पर न करना । आंखो देखी बात भी झुठी हो सकती है । जबान मुंह में रखना- घर और शहर जबान सें नहीं, रुपये और हथौडे से बनते है । तुम न तो खानाबदोश बश्कीर है, न काल्मीक जिंनकी सारी पूंजी है जुंएं और भेडें !...."
* दूसरों की छीछालेदर कसना, उनके नुकस निकालकर रखना, एक ऎसा मनोरंजन है जिस पर कुछ खर्च नहीं करना पडता, और बे-पैसे का यह मनोरंजन ही उनका एकमात्र मन-बहलाब था । ऎसा मालूम होता मानो ऎसा करके वे खुद अपने जीवन की ऊब, नेकचलनी और घिसघिस का बदला चुका रहे हों ।
* रोकाम्बोल ने मुझे सिखाया कि परिस्थितियों की शक्ति से लोहा लो, उन के सामने कभी न झुको ।
* "सूअर सभी कुछ खा सकता है--चाहे उसके अपने बच्चे-कच्चे या भाई-बहन ही क्यों न हो..."
* "ये सौदागर भी क्या जीवन बिताते है ? मुझे उनका ढर्रा जरा भी अच्छा नही लगता ।"
दाढी की लट को उसने अपनी उंगली में लपेटा और पूछने लगा :
"तुझे क्या मालूम कि वे कैसा जीवन बिताते है ? क्या तू उनके घरों में जाता रहता है ? यह तो बाजार है, मेरे लडके, और लोग बाजार में जीवन नहीं बिताते । बाजार में तो वे व्यापार करते है, या घर पहुंचने की जल्दी में तेजी से डग उठाते हुए गुजर जाते है ! बाजार में लोग कपडों से लदे-फंदे रहते है और कुछ पता नहीं चलता कि भीतर से वे कैसे है । केवल घर ही एक ऎसी जगह है जहां, अपनी चार दीवारों के भीतर, व्यक्ति उन्मुकत जीवन बिताता है । अब तू ही बता क्या तूने यह जीवन देखा है ?"
"परंतु उनके विचारों में तो ईससे अन्तर नहीं पडता । घर हो चाहे बाहर, वे एक से रहते है ।"
"यह कोई कैसे बता सकता है कि हमारा पडोसी किस समय क्या सोचता है ?" बूढे ने कडी नजर से मुझे घूरकर देखा और वजनदार आवाज में बोला । "विचार जूओं की भांती है, उन्हे गिना नहीं जा सकता--बडे बूढों ने यों ही यह नहीं कहा है । हो सकता है जब व्यक्ति घर लौटकर देव-प्रतिमा के सामने घुटने टेककर मिनमिनाता या आंसु बहाते हुए प्रार्थना करता हो : मुझे क्षमा करना, महाप्रभु, आज तुम्हारे पवित्र दिन मैने पाप किया है !' संभव है कि उसके लिए घर मठ के समान हो । प्रभु के सिवा अन्य किसी चीज से उसका लगाव नहीं । समझा ! हर मकडी को भगवान ने एक कोना दिया है--खुब जाल बुनो, परंतु अपना वजन पहचानते हुए , ऎसा न हो कि वह तुम्हारा वजन न संभाल सके...
* "अब तूने ईतनी छोटी उम्र में ही बाल की खाल निकालना शरु कर दिया है । दिमाग के सहारे नहीं, ईस उम्र में तुझे आंखों के सहारे जीना चाहिए ! दूसरे शब्दों में यह कि देख और दिमाग में बटोर रख और जबान पर लगाम कसे रख । दिमाग व्यापार के लिए है, विश्वास आत्मा के लिए । पुस्तके पढना अच्छी बात है, परंतु हर वस्तु की अपनी एक सीमा होती है । कुछ लोग ईतना पढते है कि न उनका अपना कोई दिमाग रहता है, न भगवान रहता है । वे ईन दोनों से हाथ धों बैठते
* यहां तक कि बडे-बडे लोग भी सत्य के बजाय काल्पनिक कहानियां ज्यादा पसंद करते थे । मै साफ देखता कि कहानी जितनी ही अधिक अनहोनी तथा अघट घटनाओं से भरी होती, उतना ही अधिक ध्यान से वे उसे सुनते । मोटे तौर से यह कि वास्तविककता मे6 उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी । सब भविष्य के रंगीन सपने देखना और वर्तमान के भोंडेपन तथा निर्धनता पर भविष्य की सुनहरी चादर डालकर उसे आंखों की ओट करना चाहते ।
*"जीवन की दलदल में हम उन पिल्लों की भांति घिसटते है जिनकी आँखे कभी नहीं खुलतीं । क्यों और किसलिए, यह कोई नही जानता । न भगवान को हमारी जरुरत है, न राक्षस को । और कहा यह जाता है कि हम भगवान के सेवक है ।
*मै तुझसे कहता न था कि धन का अपने आप में कोई महत्व नहीं है । अपने आप में वह बेकार है । महत्व की चीज धन नहीं, बल्कि वह है जो धन से उत्पन्न होती है, या जिसके लिए धन का उपयोग किया जाता है...
* "लोगों के लिए किसी के हदय में तरस नहीं है । न भगवान उन पर तरस खाता है, न वे स्वयं अपने पर...".
*कुबडे वैसे सभी दिमाग के तेज और खूब चतुर होते है |
* “हा, वह भला व्यक्ति है, काहिल लोगों के लिए भला बनना सबसे बडा आसान काम है । समझे ब बचुआ, दिमागी पूंजी का जब दिवाला निकल जाता है, तभी व्यक्ति भला बनता है !
* “उसकी बातों कों मन में बैठाने की जरुरत नहीं । तुम लोंग सभी कम उम्र हों, और सारा जीवन तुम्हें
पार करना है । दिमाग का कौठा स्वयं अपना विचारों से भरता जाओ ! उधार लिए सौ विचारो से अपना एक विचार कही ज्यादा किंमती होता है,”
* “आखिर पुस्तक होता क्या है ? भेदिये की भांति वह सबका भेद खोलती है ! सच, पुस्तक भेदिये का काम करती है । व्यक्ति मामूली हो चाहे बडा, वह सभी का भेद बताती है । वह कहेती है- देखो,बढई कैसा होता है । या फिर वह किसी रईसजादे को सामने खडा कर कहती है—देखो, रईसजादा कैसा होता है । मानों यें अन्य सबसे भिन्न , अनोखे और निराले हो ! और पुस्तके योंही, बेमतलब, नहीं लिखी जाती । हर पुस्तक किसी ना किसी कि हिमायत करती है.
* “आंसुऑं सॆ आग़ नहीं बुझाई जा सकती, केवल बाढ बढेगी !”
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