father Goriot - बुढा गोरियो
फ्रास के प्रख्यात लेखक "बालजाक" ये उतम रचनाओ में से ऎक है, ये कथा एक सच्चे वैज्ञानिक की चेतना और साधना मिलती है, वह ईस सामाजिक जीवन की भयंकर अव्यव्स्था में एक व्यवस्था ढूंढ निकालना चाहता है,एक वैज्ञानिक और दार्शनिक का काम सत्य का निरुपण करना है, आज वर्तमान समय मे भारत की स्थिती है ऎसी ही है जिस तरह नवलकथा मे जो बताई है. ईसी नवलकथा के कुछ वाकय नीचे लिखा है और ओनलाईन ईस नवलकथा पढना है तो लींक भी है.* योजेन रास्तीनाक उन नौजवानो में से था जिन्हे गरीबी कडी महेनत का आदी बना देती है, और जिन्हे जीवन के आरम्भ हीं मे ईस बात का आभास हो जाता है कि उनके माता-पिता ने उनके व्यकितत्व से बहुत सी आशाएं लगा रखी है.......
* उसका पेशा चाहे कुछ भी हो, उसे देखकर यह तो निर्विवाद सिध्ध था कि वह हमारे समाज की चक्की को चलाने वाले मजदूरों में से एक है, जिन्हे ईतना भी ज्ञान नही होता कि हम सेवा किसकी कर रहे है, जो सिर्फ सामाजिक मशीन के पूर्जे होते है ओर जिन्हे अप्रिय से अप्रिय काम भी करना पडता है अर्थात वह उन लोगों में से था, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके बिना काम नहीं चल सकता. पेरिस के फेशनेबिल ईलाके ईन चेहेरों से परिचित नहीं है.........
* उसके थूंकने अंदाज ही से पता चलता था कि वह ऎसा कठोर-हदय व्यकित है कि विपति से छुटकारा पाने के लिए वह कोई भी अपराध कर सकता है.......
* लेकिन वह उन लोगो में से थी,जो समीप वालों से तो सावधान रहते है ; लेकिन अजनबियों का जट विश्वास कर लेते है...
* "अगर गाडी में बैठे हुए, तुमपर कीचड की छींटे पडें तो तुम शरीफ आदमी ही कहलाओगें और अगर पैदल चलते कपडे लथपथ हो जाएं तो बदमाश समजें जाओंगें. अगर दुर्भाग्यवश तुम किसकी जेब से दो-चार आने उडा लो तो अदालत में लोगों के लिए तमाशा बन जाओगें. लेकिन अगर तुम लाखो चुरा सको तो दीवानखाने मे बैठे सत्य और सदाचार के देवता समजें जाओगें ओर फिर मजा यह है कि ईस प्रकार की नैतिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए तुम पुलिस और अदालतों को तीन करोड अदा करते हो, कैसी अदभूत स्थिति.
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