Sunday, August 06, 2006

तीन वर्ष -Three Years By Anton Chekhov

Three Years By Anton Chekhov.
तीन वर्ष : लेखक 'एंतोन चेखोव.

ये कथा आदर्श और यथार्थ के द्र्न्द्र से परिपूर्ण ऎक मर्मस्पर्शी उपन्यास है, जिसका कथानायक एक ऎसा नौजवान है जो संस्कारों की घुट्न ओर थोथे हवाई आदर्शो की दुनिया मे पला होने के कारण कभी अपने वातावरण से समझोता नही कर पाता. 'विवाह और प्रेम', 'प्रेम और विवाह', सुखी गार्हस्थ्य जीवन - आखिर ये सब भ्र्मात्मक विचार ही है जिनमें काफी समय तक उलझा रहता है, और अन्तत: ईस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि "व्यक्ति की खुशी के विचारो को हमेंशा त्याग देना चाहिए..सुख नाम कि कोई चीज नही है.." ओर तब वह पुराने ढर्रे के जीवन का आदी होते हुए भविष्य का ईंतजार करने लगता है ; क्योंकि कौन जानता है कि भविष्य के गर्भ मे कया छिपा है !"
ईसी उपन्यास का हिन्दी मे अनुवाद "मार्कण्डेय" जी ने. उपन्यास के कुछ वाकय :
* "ठीक है, संसार में सभी चीजों का अंत होता है," उसने धीरे से कहा और उसकी काली आंखें सिकुड्कर छोटी हो गयीं. "तुम प्रेम में फँसोगे और दु:ख भोगोगे और फिर उससे निकल भी आओगें,वह तुम्हारे प्रति बेवफा होगी, जेसा हर स्त्री जल्दी या बाद मे हो जाती है.तुम दु:ख भोगोगे,निराश होगें और फिर तुम भी उसके प्रति बेवफा हो जाओगें, परंतु जल्दी ही , वह समय भी आयेगा कि जब सब कुछ स्मृतियों का हिस्सा बन जायेगां; और तुम बहुत ठंण्डे दिल से उसके बारे मे बात करोंगें और ईस सबको बेंमानी समझने लगोगें.
*"मेरे प्यारे कोस्त्या, मै तुम्हे यह शुभ समाचार पहुँचा रहा हूं कि मै फिर प्रेम करने लगा हूं........मेरे प्रिय मित्र,सोचो ,मै प्रेम के मामले में कितना अभागा रहा हूं ! स्त्रियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में मुझे कभी भी सफलता नहीं मिली. मुझे यह दुबारा कहने में हार्दिक कलेश पहुंच रहा है कि मेरी जवानी बिना प्रेम के बीत गयीं,ओर अब 34 वर्ष की अवस्था में मेने जाना है कि प्यार क्या चीज है,ईसलिए मै कहता हूँ कि ईसे फिर से होने दो......
* यात्सेर्व विश्वविधालय के प्राध्यापकों के स्वर में बोलता रहा, "जलवायु,शक्ति,रुची और उम्र की विभिन्नता के कारण समानता भौतिक रुप से असम्भव है, परंतु एक सुसभ्य आदमी ईस असामनता को खतरे से हीन कर सकता है,जैसे उसने कच्छ और भालु के साथ किया है.हम सभी उस वैज्ञानिक के बारे मे जानते है,जिसने एक बिल्ली,एक चूहे,एक बाज और गौरैया को एक ही प्लेट मे खाने कि शिक्षा दी.मेरा ख्याल है कि आदमी के साथ भी शिक्षा वही करेगी,जीवन हमेंशा विकसित होता है.संस्कृति का अत्यधिक विकास हो रहा है ओर ईसमें सन्देह नही कि एक ऎसा भी समय आयेगा,जब उदाहरण के लिए,आज के फेकटरी मजदूर कि स्थिति उसी प्रकार बेकार हो जायेगी, जैसी आज जमींदार कि है,जबकि किसानो की लडकियाँ कुत्तों से बदली जाने लगेंगी."
"ईसके आने में बहुत समय लगेगा",कोस्त्या ने कुछ मुस्कराकर कहा "ईसके बहुत पहले कि रोथ्सचाईल्ड(फ्रांसीसी बेंकर) अपनी सोने की तिजोरियों को बेकार की समझे,ईस बीच मजदूर अपनी कमर झुकायें भूखों मर जायेंगें.नहीं जनाब, ईससे काम नही चलने का. हमें लडना चाहिए,अगर एक बिल्ली उसी प्लेट में खाती है,जिससे चूहा खाता है,तो आप क्या समझते है कि उसने अपने रास्ते की गलतियाँ समझ ली है ? ऎसी कोई बात नहीं है, ऎसा ईसलिए है कि उसे ऎसा करने के लिए लाचार कर दिया गया है."
*"अब भी मै मरना नही चाहता....विश्व में कोई ऎसा दर्शन नहीं है,जो मृत्यु के विचार के साथ मेरा समझौता करा सके....क्या तुम जीवन को प्रेम करते हो ?..."जहा तक मेरा प्रश्न है,में अपने को समझ ही नही पाया....मै हर रोज ज्यादा-से-ज्यादा आश्वस्त होता जा रहा हूं कि हम किसी महान विजय के किनारे पर है और में चाहता हूं कि मुझे ईसमें हिस्सा लेने का मौका मिले,मानो या ना मानो, मै विश्वास करता हूं कि ईस समय विकसित होनेवाली पीढी अनोखी है....."मै एक रसायनशास्त्री हूं और रसायनशास्त्र के ही अनुरुप सोचता हूं ओर रसायनशास्त्री के ही रुप में मरुंगा,वह कहता गया,"परंतु मै अति लोलुप हूं और पूरा संतोष प्राप्त करने के पहले ही मर जाऊँग.
* "प्रतिष्ठित परिवार ? " लेपतोव ने अपने गुस्से को दबाते हुए पूछा,"क्या कहना है प्रतिष्ठित परिवार का ! हमारे पितामह को जमींदारो ने अपनी जमीन में से निकाल फेंका था और हर सडा हुआ मामूली अधिकारीं उनके मुँह पर थूंक देता था.पितामह ने उसी तरह पिता को निकाल बाहर किया और पिता ने हमकों और तुमको,हम लोगों को ईस प्रतिष्ठित परिवार ने क्या दिया है ? किस तरह की शांती ,कैसा रकत हमें विरासत मे मिला है ? हम तीन वर्ष तक एक नीचे दरजे के पादरी की तरह मिथ्या प्रलाप करते घूमते रहे,और अब तुमने यह लेख लिखा है...यह गुलामो की तरह की मिथ्या बकवास ?और देखो, मेरे साथ क्या हुआ ? मेरे अन्दर कोई मुलायमियत,कोई शक्ति,कोई चरित्र और कोई साहस नही है. मै कोई कदम उठाते हुए डरता हूं कि कोई मुझे पीट न दे,मै ऎसे मामूली तुच्छ और बुध्धिहीन लोगों के आगे भी काँप जाता हुं,जो मानसिक और नैतिक दोनो दृष्टियों से मेरे सामने कुछ नही है.मै सडक पर, झाडु लगानेवालों,कुलियों,पुलिस के सिपाहियों-सबसे डरता हूं,क्योकि मेरे जन्म एक भयात्रांत स्त्री की कोख से हुआ है,जन्म से ही हमारे साथ दुर्व्यवहार हुआ और हमारे उपर आँखे तरेरी गयी.अच्छा होगा कि हमारे-तुम्हारे कोई बालक न हो.मै यह प्रतिष्ठित व्यापारी-परिवार ईश्वर को सौंपता हूं,जो हमारे साथ ही समाप्त होता है.
Read online :
Three Years By Anton Chekhov

0 Comments:

Post a Comment

<< Home

View blog authority
Free Counter
Free Counter

XML
Google Reader or Homepage
Subscribe
Add to My Yahoo!
Subscribe with Bloglines
Subscribe in NewsGator Online

BittyBrowser
Add to My AOL
Convert RSS to PDF
Subscribe in Rojo
Subscribe in FeedLounge
Subscribe with Pluck RSS reader
Kinja Digest
Solosub
MultiRSS
R|Mail
Rss fwd
Blogarithm
Eskobo
gritwire
BotABlog
Simpify!
Add to Technorati Favorites!
Add to netvibes

Add this site to your Protopage

Subscribe in NewsAlloy
Subscribe in myEarthlink

Add to your phone


Feed Button Help