Thursday, January 25, 2007

The Egyptian -- वे देवता मर गय

Egyptian
By.
Mika Waltari.

वे देवता मर गये.
लेखक : माईका वाल्तारी
हिन्दी अनुवाद : लक्ष्मण चतुर्वेदी.

"वे देवता मर गये" एक ऎसी उपन्यास है जिस में ईजीप्त के फराउन साम्राज्य के अपार वैभव एवं विलास चित्र प्रस्तुत करता है,निर्बल,निर्धन एवं दासो पर अत्याचार के आँसुओं पर लिखी गई है, ईसी उपन्यास के कुछ अंश.
* मै सिन्यूहे,सैन्मट और उसकी स्त्री कीपा का पुत्र, ईस पुस्तक को अपनी ईच्छा से लिखता हूँ. मै ईसे कैम-देश के देवताओं की स्तुति में नहीं लिखता क्योंकि मै देवताओं से उब चुका हूँ और न मै ईसे फराओं की स्तुति में लिखता हूं क्योंकि मै उनके कार्यो से परेशान हो गया हूं. न मुझे भविष्य की कोई आशा रह गई है क्योंकि अपने जीवन-काल में मैने ईतना सब पाकर खो दिया है कि अब और पाने का प्रश्न ही नही उठता. भविष्य भी मेरे लिए उतनी ही उबने वाली बात लगती है जितने कि देवता और राजा लोग रहते है. मै यह पुस्तक केवल अपने संतोष के हेतु ही लिखता हूं, केवल अपने लिए.....
* कभी कभी सडक पर मल्लाह् गाली-गलौज करते हुए मदिरा के नशे में निकलते और हमारी एकेशिया की झाडियों के बाहर पेशाब करने रुक जाते. मेरा पिता उनसे कुछ नहीं कहता पंरतु उनके जाने बाद वह मुझसे कहता: "सडक पर ईस तरह पेशाब केवल हब्शी या गन्दा सीरियन ही कर सकता है, मिश्री नहीं करतां, वह तो दो दिवारों के बीच करता है". या फिर कभी-कभी वह कहता: "उचित मात्र में मदिरा एक ईश्वरीय देन है जिससे हदय पुलकित हो उठता है, एक गिलास से मनुष्य आंनन्द अनुभव करता है परन्तु उसके दो गिलास मनुष्य की जिह्वा को बेकाबु बना देते है. और जो व्यक्ति ईसे पात्र भरकर पीता है वह जब होश में आता है तो अपने आपको नाली में पडा हुआ पाता है-लुटा हुआ,पिटा हुआ.
* तब मुझे अनुभव हुआ कि धनवान और शक्तिशाली लोग अपनी लापरवाही से निर्धनों के लिए कितनी निराशा और कितना दु:ख उत्पन्न कर सकते है.
* प्रेम-बेम कुछ नहीं होता. व्यक्ति बिना स्त्री के उदास रहता है और स्त्री एक बार मिल गई तो उसे और पाने के लिए और ज्यादा उदास रहता है. ऎसा ही होता आया है, ऎसा ही होगा...प्रेम की बातें मुझसे व्यर्थ मत करो वरना कहीं मुझे तुम्हारा सिर न खोलना पड जाये.
* "नहीं-नहीं" युवराज ने जोर देकर कहा : "एटोन के साम्राज्य में रक्त बहाना सबसे बडा अपराध है...रक्तपात धृणित कार्य है".
"रक्त मनुष्यों को शुध्ध करता है और उन्हे शक्ति प्रदान करता है. ईससे देवता मोटे होते है. जब तक युध्ध होते रहेंगे तब तक यह होगा".
"युध्ध अब कभी न होंगे". युवराज ने आज्ञा दी और हौरेमहैब सुनकर हँसा ।
बोला "लडका पागल है ! युध्ध सदा से होते आये है और सदा ही होंगे ; क्योंकि यदि साम्राज्यों को जीवित रहना है तो शक्ति की परख करनी होगी ही ।"
* जहाँ लोगों ने मुझे पर थूका और कुतों ने मुझ पर पेशाब किया.
*"मै सैन्मट, जिसका नाम जीवन-गृह की पुस्तक में लिखा है और मेरी स्त्री कीपा अपने पुत्र सिन्यूह को........जीवन की जीन कठिनाईयों के कारण तुम्हें ऎसा करना पडा उनके लिए दु:ख न करना.हमारे लिए कब्र भी न रही तो क्या हुआ ? सभी कुछ तो नष्ट होता है.फिर हमारा अस्तित्व ही क्या है ?....मृत्य हमारे लिए सुखमय आलिंगन है जैसे हारे-थके के लिए नींद !...
* "मेरा अपना देवता तो होरस है और वैसे मै अम्मन के विरुध्ध भी नहीं हूं. परन्तु अम्मन के पुजारियों की शक्ति ईतनी अधिक बढ गई है कि उन्हे रोकने के लिए फराउन के नये देवतता--ईस एटौन की भी आवश्यकता है.यहां तक तो सब ठीक है और एटौन के मंदिर ईत्यादि के निर्माण भी सब ठीक है परन्तु ईससे आगे सच्चाई कों ढूँढने का प्रयास भयानक है क्योंकि सत्य तो उस तेज चाकू के समान है जो किसी बच्चे के हाथ में हो. चाकू को तो म्यान में रखना चाहिए जब उसकी आवश्यकता हो. अतएव शासक के लिए सत्य बहुत हानिकारक है".
* ईस यात्रा से मैने यह सीखा कि हर देश में भाषाएँ, देवताओं के नाम और रीति-रिवाज अवश्य भिन्न होते है परन्तु सभी जगहों में धनवान और गरीबों का रहन-सहन, सोचने की शक्ति और अधिकारों के पीछे झगडे एक से ही होते है.गरीब हर जगह एक से ही होते है--उनका दु:ख सभी स्थानों मे अवर्णनीय होता है.मेरा हदय उनके दु:ख को देखकर पिघल गया...
* "यह विश्वसनीय बात नहीं हो सकती", मैने कहा, "क्योंकि भेडिये अपनी डाढें औरों को उधार नहीं देते".
* तुम्हारें देशों में अभी लोग गरीबो पर राज्य करते करते है परन्तु हाती देश मे ऎसा नही होता. यहाँ तो बलवान दुर्बल पर राज्य करते है.
* परन्तु घुणा ईत्यादि सब कुछ करते हुए भी लोगों का आना मेरे यहाँ कम नहीं हुआ क्योंकि बीमारी और दुख-दर्द मनुष्य मात्र देखकर आते है न कि जन्म अथवा राष्ट्र .
* वहीं मेने सीखा है कि विद्रानों की दृष्टि में सभी लोग बराबर होते है. कोई देश एक-दुसरे से न बुरा होता है न अच्छा. सभी जगह बहादुर,विद्रान, डरपोक, क्रूर और बदमाश लोग रहते है. अतएव राजा लोग स्वयं तो किसी से घृणा नहीं करते परन्तु घृणा राजा का सबसे बडा अस्त्र बन सकती है. जब तक यह लोंगों के हदय में नहीं बैठाई जाती लोग हथियार चलाने मे असमर्थ रहते है.
* "स्वतन्त्रा शब्द के भी कई अर्थ होते है--कोई उसका कुछ अर्थ लगाता है तो कोई कुछ और परन्तु जब तक वह मिल नहीं जाती तब तक तो उसकी कुछ चिंता है ही नहीं ? बहुत से स्वतन्त्र होने में लगे रहते है परन्तु जब स्वतन्त्रता मिल जाती है तो वह उसे केवल अपने लिए रख लेते है--मेरा विचार है कि एक दिन अम्मूरु की भूमि स्वन्त्रता का मुल्क कहलायेगी--जो राष्ट्र उन सब बातों पर विश्वास कर लेता है जो भी उससे कहीं जाती है--उस मवेशियों के झुंड की भाँति होता है जिसे डंडा लेकर एक द्रार से हाँका जा सकता है या शायद भेड के उस बच्चे के समान है जो अगली घंटी को सुनकर पीछे-पीछे चलता जाता है और समझता है कि वह ही उस भुंड का सरदार है".
* मै घर जा रहा था हालाँकि मेरा कोई घर नहीं था--और मै संसार में बिल्कुल अकेला था.
* मैने मैरिट से कहा : "जीवन एक ठंडी रात के समान है परन्तु यदि दो एकाकी मिल जाते है तो वह सुखकर हो जाती है--हालाँकि उनके हाथ और उनकी आँखे साफ बतला देती है कि वह मित्रता बनाये रखने के लिए कितनी बडी झूंठें --छिपा रहे है.
* जलघडी में से जल बहते सभी ने देखा है ; और उसी भाँति जीवन भी बहता चला जाता है--बस यह पानी सं नहीं नापा जाता बल्कि विशेष घटनाओं से विभूषित किया जाता है.वृध्धावस्था में पहुँचकर ही मनुष्य ईस सत्य को पहचान पाता है जब उसे सभी कुछ बुरा मालूम होने लगता है--एक महत्वपूर्ण दिन कई वर्षो के मामूली जीवन से अधिक छाप मनुष्य के हदय पर छोडता है--और यह सत्य मैने नये महानगर एखटैटौन मै रहकर सीखा जहाँ मेरा जीवन नील के जल के समान निर्बाध रुप से बहता रहा और मेरा जीवन मुझे स्वप्न की भाँति प्रतीत होने लगा था--दस वर्ष मैने फराउन एखनैटीन के सुवर्ण-गृह में बिता दिये--यह दस वर्ष मेरे जीवन के सबसे छोंटे साल थे जो हाथ भी न आए--एकदम फिसल गए.
* "सैट और तमाम शैतानों की कसम ! सडक पर पडी हुई लींद भी ईस जीवन-पदक से ज्यादा फायदेमंद है. जहाँ फराउन निश्चय ही पागल है, पर ईससे भी ज्यादा पागलपन तो यह है कि जब वह मुझे निगाह भरकर देखता है, मेरे कंधों पर हाथ रखता है और मुझे मित्र कहकर संबोधन करता है तो मै उसकी बातों से प्रभावित हो उठता हूं हालाँकि मैं जानता हूं कि वह जो कुछ कहता है सब गलत कहता है. यदि संसार के सारे आदमी उसके सामने एक-एक करके लाए जाएँ तो शायद वह सभी के दिल बदल दे पर यह सब व्यर्थ की वार्ता है--पर मुझे अब ईस नगर में, जो किसी रखेल जैसा लगता है, नहीं रुकना चाहिए अन्यथा मेरे भी अन्य दरबारियों की भांति स्तन निकल आवेंगे और फिर शायद मुझे भी बच्चों को दुध पिलाना पड जाय".
* राजमाता मुझसे एक एकांत कक्ष में मिली. जहां बहुत-सी-छोटी-छोटी रंगबिरंगी चिडियाएँ जिनके पंख काट दिये थे--पिंजडों में फुदक रही थी.वह शायद अपनी जवानी के दिन अभी तक नहीं भूली थी जब वह चिडियाँ पकड कर बेचा करती थी.
* "दुनिया में भलाई से कुछ प्राप्त नहीं होता-- जो कुछ होता है सब शक्ति से होता है. जो जन्मजात शक्तिशाली होते है वह ईसका महत्व अनुभव नहीं कर पाते--परन्तु मै ईसका महत्व जानती हूँ क्योंकि मै तो गरीब थी. ईसे बनाये रखने के लिए मैने सब कुछ किया है--कभी कसर नहीं छोडी है--चाहे देवता लोग मेरे कर्मो से खुश न हों पर मुझे ईसकी तनिक भी चिंता नहीं है क्योंकि मैने सदा फराऊन को ही सर्वोच्य माना है. दुनिया में न सचाई रह जाती है और न बुराई --जो सफल हो गया वह अच्छा कहलाता है और पकड गया वह बुरा.
* जब मनुष्य का ज्ञान अधिक बढ जाता है तो परेशानी भी बढ जाती है---
* जो हमारे साथ नहीं है वह हमारा शत्रु है.
*'हे राजकुमारी ! मै तो यही चाहूँगा कि तुम सदा फलने-फूलनेवाली सुन्दरी बनी रहो--और क्या तुम्हारी माँ के पास एक भी ऎसी विश्वस्त स्त्री नहीं थी जो ईस समय यहाँ बैठकर रो सके ? कम-से-कम उस समय तक तो यहाँ किसी को रोना ही चाहिए जब तक कि मृतक-गृह से लोग शरीर लेने न आ जाएँ ? रोने को तो मै भी रो सकता हूँ पर मै तो वैध हूँ जिसके आँसु मृत्य के निरन्तर साथ रहने से सुख गए है--जीवन एक गर्म दिन है जबकि मृत्यु ठंडी रात है--और बैकेटैटौन, जीवन उथले पानी की झील है जबकि मृत्यु गहरा शुध्ध जल है'.
उसने कहा : मुझसे मृत्यु के बारे में बात न करो सिन्यूहे, क्योंकि अभी जीवन मुझे अच्छा लगता है--यह सच ही शर्मनाक है कि मेरी माता के पास कोई रोने वाला नहीं है. मै स्वयं तो भला किस प्रकार रो सकती हूँ क्योंकि यह मेरी शान के विरुध्ध है. परन्तु मै अभी किसी दरबार की स्त्री को भेज देती हूँ कि वह जाकर रोने बैठ जाय.
* मनुष्य को निश्च्य ही ईतना सुखी कभी नहीं होना चाहिए क्योंकि सुख भला कब स्थायी रह सकता है ?
* "ईतना बडा रंगा-पुता और जबरर्दस्त जहाज युध्धपोत न होकर वेश्या ही बना रहा, धिक्कार है ईसे !"
* "ओह सिन्यूह ! जब कोई अकेली रहती हो और उसके जीवन का वसन्त निष्फल ही बीत गया हो तो उसे सत्य से झूठ कितना प्यारा लगता है.
*"काश वह मुझे उस भयंकर रहस्य को कभी न बतलाता. मेरा पुत्र --मेरी आँखों का तारा मेरा वंशज,क्रूर सैनिकों ने मार डाला--कितने धूणित होते है यह कल्पित देवता, जिनके नाम पर लाखों की हत्या कर दी जाती है.
* क्या भेद है मितन्नी,हितैती और मिश्री में ? भेद है केवल एक, और वह है धनवान और निर्धनो का, जो सभी जगह है. क्यों है लोगो में देवताओ का ईतना भय कि आपस में ही ईतनी बडी दीवालें खडी कर लेते है ?
* जब मै यह सोचता हूँ तो मेरी आँखों के सामने वह पेशाब की दुर्गन्ध में सने बर्बर सैनिक आ जाते है जो धन के लिए लडते थे--जो भूखे पेट को भरने के लिए लडते थे--और जिनकी लाशों के ढेर पर महान साम्राज्यों की दीवालें खडी की जाती थीं.
* "न हम किसी की हत्या करना चाहते है न करते है.यदी तुम बुराई का फल भलाई से देना चाहते हो तो धनवानों के पास जाओ, फराऊन के सरदारों और न्यायाधीशों के पास जाओ क्योंकि हत्या और तमाम बुराईयाँ तुम्हें हमसे कहीं अधिक धनवानों में ही मिलेंगी". कितना भयानक सत्य कहा था उन्होंने.
* मै अपनी गाथा लिख रहा हूँ. मेरे हदय में कितनी व्यथा है ईसे कौन जान सकेगा--मुझे पता नहीं कि यह पैपाईरस के पते.कहाँ उड जायेंगे यानी नील के प्रवाह में बह जायेंगें. परन्तु मै लिख रहा हूँ अपनी व्यथा कम करने के लिये क्योंकि कहते है कि किसी से कहनें से व्यथा कम हो जाती है.अब जब सुनने वाला कोई नहीं है तो लिख ही लूँ. सहानुभूति से ही तो मनुष्य को सांत्वना मिलती है. पता नहीं किस दिन मुझे पश्चिमी देश की यात्रा पर जाना पड जाय--तब मैं ठंडी-ठंडी रेत में पडा रहूँगा--ठंडी क्या ? यदी दिन हुआ तो गर्म रेत पर मेरा शरीर पडा रहेगा--क्या यही है मेरे जीवन का अंत ?
* मै, सिन्यूहे ! मनुष्य हूँ. मुझे एक ही सन्तोष है और यह कि कुछ तो ऎसे है ही जिनके आँसुओं, जिनकी आहों मे मै रहा हूँ और सदा रहूँगा...मुझे ईच्छा नहीं है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरी कब्र बनाई जाय और मेरा शरीर शाश्वत काल तक के लिए मसाले बना कर रखा जाय क्योंकि मुझे देवताओँ पर अब बिल्कुल विश्वास नहीं रहा है, क्योंकि अब मै उनसे ऊब चुका हूँ.

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