Thursday, August 07, 2008

The Painted Veil-पतिता.

Painted Veil.
By.
Somsent mom


पतिता.
लेखक ; सोँमसेंट मोँम
* ओहदा जब तक भी बना रहे बडा ही होता है । जब भी किसी बडे औहदे का कोई व्यक्ति किसी जगह जाता है तो बैठे हुए लोग खडे होकर उसका अभिवादन करते है, स्वागत करते है । परंतु एक रिटायर्ड गवर्नर को कौन पूछता है ?
* वह पहले से अधिक शांत हो गया था । चूँ’कि वह पहले ही से शांत प्रकृति का पुरुष था अत: घर में किसी ने भी उसकी बढी हुई शांत प्रवृति पर ध्यान न दिया । उसकी लडकियों ने उसे आमदनी का सहारा मात्र ही समजा था । उनकें विचारों में पिता का काम दर-दर भटक कर उनके लिए सुख-सुविधा,वस्त्र, रहने की व्यवस्था और खर्च का ईन्तजाम करना था । अब यह समझकर कि उसी की गलतिंयो से घर की आमदानी घट गयी है, उनमें उसके लिए घृणा का भाव भर गया था । कभी भी उन्होंने उस निरीह व्यक्ति के सम्बन्ध में अधिक कुछ नहीं जानना चाहा । वह जो तडके—सवेरे घर से निकल जाता था और रात गये खाना खाने कि लिए आता था : ईससे बर्नाड अपने घर में ही अजनबी बन गया था ।
* “तुमने कभी प्रकट तो नहीं किया ।“
“हाँ ! मेरा तरिका थोडा असभ्य रहा ; जिन बांतों का मै मुल्य समझता हूँ अधिकतर उनके सम्बन्ध में कुछ नहीं बोलता ।“
* उसके बेतुके आत्म-नियन्त्रण से ऊब गयी थी । आत्म-नियन्त्रण उस अवस्था में तो ठीक है जब कोई स्वयम में रह जाना चाहता हो,---और अपने स्वयम के अतिरिक्त अन्य कोई दायित्व न हो ।
* वाल्टर ने कहा, “तुम्हारे प्रति मैने बहुत बडी बांते नहीं सोची थी । मैने स्वप्न नहीं देखे थे । मै जानता था कि तुम मूर्ख, बेकार और उजड लडकी थीं । फिर भी मैंने तुमसे प्रेम किया । मै जानता था कि तुम्हारी आदतें और काम सब बजारु थे, परंतु मैने तुमसे प्रेम किया । मै जानता था कि तुम ऊँचे स्तर की नहीं हों, तब भी मैने तुमसे प्रेम कियां मैं आज सोचता हूँ तो हँसी आती है कि जो तुमने चाहा, उसे मुझे चाहना पडा है । मै तुम्हे जताना चाहता था कि मै बैवकूफ, अशिष्ट नहीं हूं । बदनामी फैलाना नही चाहता । “मुझे मालूम था कि बुध्धि से तुम्हें घृणा है फिर भी मैंने सारे काम तुमने जैसे चाहे बिल्कुल वैसे ही किये; मैने तुम्हें पूरी तरह सोच लेने दिये कि जैसे अन्य पुरुषों को तुम बुध्धु समझती हो, मुझे भी समझो । मुझे यह भी पता है कि तुमने अपनी सुविधा के कारण ही मुझसे विवाह किया । ईस सब को भुलाकर मैंने तुम्हें चाहा है ।जब मैनें देखा कि तुम मेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं दे रही हो तो । और लोग तो कुछ से कुछ हो जाते है, मैंने ऎसा कुछ नहीं किया । मैंने अपने प्रेम का प्रतिदान तुमसे कभी चाहा ही नहीं । मेरी समझ भी नहीं आया कि प्रतिदान दो भी तो क्यों ? मैने स्वयम को कभी भी प्रेम के योग्य नहीं माना । मैं तुमसे प्रेम करता था यही मेरे लिए बहुत था । जब कभी तुम्हारी आँखो में भूले-से भी म्रेरे प्रति स्नेह उमडता, उसे देख मैं फूला नहीं समाता था । मैने कभी भी अपने प्रेम को तुम पर भार नहीं बनने दिया । जब कभी तुम में उकताहट आती
मैं तुरन्त ही भाँप जाता बहुत से पति जिसे अपना अधिकार मानते है, उसे मैंने केवल उपकार समझा ।“
* केवल सताईस वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु पा लेना दुर्भाग्य नहीं, तो और क्या है ?
* “संसार में मूर्खोँ की कमी नहीं है । और जब कोई अच्छे ओहदे पर हो और वह आपसे कोई वायदा कर ले, पूरा न करे और आपके पीछे आपकी बुराई करे, ऎसे व्यक्ति साधारणतय: चतुर समझे जाते है । --और फिर उसकी पत्नि भी तो है । वह सचमुच एक कुशल नारी है । उसकी बातें मानने योग्य होती है । चार्ली जब तक उसके कहे में है, तब तक ही उसकी कुशल भी है, और सरकारी-नौकरी पाने से पहले कहीं सुघड पत्नि मिल जाये, तो सोने पर सुहागा हो जाये । सरकार कभी भी योग्य या चतुर व्यक्ति नहीं चाहती, न उसे नित्य नये-नये विचारों की आवश्यकता होती है, बल्कि उससे तो सरकार को असुविधा ही हाती है । ईसके विपरीत सरकार को आकर्षक एवम चलते-पुर्ज व्यक्ति चाहिएँ जो दिमाग से काम न लें और सरकारी काम में कोई बडी बाधा या गलती न हो । चार्ली जरुर शिखर तक पहुँचेगा ।“
*”बात यह है कि आप और में शायद दो ही ऎसे व्यक्ति है जो यहां की जमीन पर शांति और बेफिक्री से घूमते है । नन स्वर्ग में विचरती है और आपके पति महोदय ! –अन्धकार में ।“
* “मै उसका आदर करता हूँ । उस व्यक्ति में चरित्र है और बुध्धि भी । और यह आपको मालुम होना चाहिए कि चरित्र और बुध्धि का मेल दुर्लभ होता है ।
*”कितना बीभत्स है ?”
“क्या ? मृत्यु ?”
“जी ! मृत्यु हर वस्तु को कितना छोटा बना देती है । यह जो कभी व्यक्ति था । अब वैसा नही लगता । ईसकी और देख कर कौन कहेगा कि यह कभी जीवित भी था । कौन ईसे देख कर सोचेगा कि वर्षो पहले यह भी छोटा-सा-बालक था जो ईस पहाडी पर दौडा करता था और दौड-दौड कर पतंग उडाता था ।“ और किटी का कण्ठ अवरुध्ध हो गया.
* नदी धीमे बह रही थी पर तब भी उसमें गति थी,---उसमें जीवन था । यह देख कर भान होता था कि हर वस्तु का रुप बदल जाता है, पर गति नहीं रुकती जीवन विधमाने रहता है । वस्तुएँ समाप्त हो जाती है, पर अपना चिन्ह छोड जाती है । किटी ने सोचा कि सारा-का-सारा मानव-समुदाय नदी मे पानी के बिन्दुओं के समान है और नदी अपने साथ उन बिन्दुओं को बहाये लिए जा रही है । हर बूँद बिल्कुल एक-दूसरी से जुडी-बँधी है, फिर भी दोनों में दूरी है । बूँदों का ईतना व्यापक और नियन्त्रित स्वरुप भी सागर की और नदी बहाकर लिये जा रही है । उसने सोचा जब जीवन का अर्थ केवल ईतना सा है तो मनुष्य की यह मूर्खता ही तो है कि वह छोटी-छोटी बातों को बेकार महत्व देकर अपना जीवन दु:खी बना लेता है ।
* “देखिए, हममें से कुछ तो समझते है कि अफीम के नशे में वह रहस्य निहित है,--कुछ सोचते है कि अध्यात्म के पथ पर चल कर उसे जाना जा सकता है—कुछ लोगों का विचार है कि वह मदिरा में मिलता है और कुछ उसे प्रेम में ढूंढते है । परंतु ईन सबसे कुछ हासिल नहीं हो पाता ।“
* “मेरे पिता जी के लिए यह सूचना कठोर आघात थी । मैं उनकी एक ही लडकी थी और पुरुष साधारणतय: बेटों से अधिक बैटियों से स्नेह करते है ।“
* “हदय होना भी दुर्भाग्य ही है।“
* “हदय जीतने का केवल एक ही मार्ग है कि जिसे जीतना है उसका-सा बन जाओ ।“
* जीवन केवल परीक्षा है, जिसमें उन्होंने उतीर्ण होना है. उनके हदय में केवल एक विश्वास है, एक लगन है---एक ध्यान है कि एक दिन वह वहाँ पहुँच जाँयेगी जहाँ उन्हें शाश्वत जीवन मिलेगा ।
किटी ने अपने हाथ बाँधकर वैडिगटन की और देखा ।
”अच्छा थोडी देर को मानिये कि ईस दुनिया के बाद कोई जीवन नहीं है—तब क्या मृत्यु हर बात का अन्त नहीं कर देती ? तब क्या उन ननों ने अकारण ही सारा त्याग नहीं किया ? क्या वह ठगी नहीं गयीं ?”
*”मैं नहीं समझता कि उन्होंने अपना ध्येय स्वन्पिल माना है । उनका जीवन उनके लिए बडा रोचक है । मै तो मानता हूँ कि कभी कभी मानव अपने जीवन में कुछ ऎसा सुन्दर कर दिखाता है कि उसमें उसका मन लगा रहता है, नहीं तो संसार में मन लगाने को कुछ है ही नहीं । मानव कभी चित्र बनाता है,---कभी संगीत रचना करता है । कभी साहित्य सृजन करता है और ईस तरह जीवन बिता लेता है । ईन सबसे अधिक सुन्दर है सुखद और सुन्दर जीवन बिता पाना । वही कला की सर्वोत्कृष्ट देन है ।“
* “देखिए आर्केस्ट्रा में हर वादक अपना-अपना साज बजाता है ।
* “कुछ नहीं ! पथ और पंथी की बात थी । यही कि हर जीव उस मार्ग पर चलता है पर वह मार्ग किसी जीव ने नहीं बनाया । पथ स्वयम बना है । वह सब कुछ है और कुछ भी नहीं । उसी ने सबका उदभव है,--उसी में सब फिर समा जाते है । वह बिना कोण का एक चौखटा है,--वह एक आवाज है जिसे कान नहीं सुन पाते—वह एक मूर्ति है पर जिसका कोई आकार नहीं है । वह जाल है,---पर उसका हर फन्दा एक-एक सागर के बराबर बडा है । वह एक ऎसा विश्राम-स्थल है जहाँ हर किसी को आराम मिलता है । वह कहीं नहीं है,--पर फिर भी आप उसे देख सकती है । आप चाहें न चाहें पर हर नियत घटना घटती रहती है । जो निभ जाता है उसका भला होता है,--जो झुका जाता है उसे सीधा कर दिया जाता है । असफलता सफलता का आधार है । और सफलता में असफलता निहित है । परंतु कौन जाने कि मोड कहाँ आता है ? आक्रमण को विजय मिलती है पर बचने वाले को सफलता मिलती है । वही शक्तिशाली है जो स्वयम को जीत ले ।“
* उसने सोचा सभी के अन्तर में कुछ ऎसे रहस्य होते है जो हर कोई दूसरों से छिपा कर रखना चाहता है ।

Read Novel review : The Painted Veil

Labels:

View blog authority
Free Counter
Free Counter

XML
Google Reader or Homepage
Subscribe
Add to My Yahoo!
Subscribe with Bloglines
Subscribe in NewsGator Online

BittyBrowser
Add to My AOL
Convert RSS to PDF
Subscribe in Rojo
Subscribe in FeedLounge
Subscribe with Pluck RSS reader
Kinja Digest
Solosub
MultiRSS
R|Mail
Rss fwd
Blogarithm
Eskobo
gritwire
BotABlog
Simpify!
Add to Technorati Favorites!
Add to netvibes

Add this site to your Protopage

Subscribe in NewsAlloy
Subscribe in myEarthlink

Add to your phone


Feed Button Help