The end of the affair - उस रात के बाद
The End of The AffairBy Graham Greene
उस रात के बाद
लेखक : ग्रेहाम ग्रीन
मनुष्य के ह्रदय में कुछ ऎसे भी स्थल है जिनका अभी कोई अस्तित्व नहीं ; और पीडा उन्हीं को को छूती है जिससे वे अस्तित्व में आ सके.
-लेओन ब्लोय.
* कहानी का अपना कोई आंरम्भ या अन्त नहीं होता ; लिखनेवाला अपने अनुभव का कोई भी एक क्षण चुन लेता है और वहां से आगे या पीछे की और देखने लगता है । और चुन लेने की बात में भी मै समझता हूँ कि मेरा व्यर्थ का गर्व ही झलकता--एक ऎसे लेखक का गर्व जिसका यदि कहीं गम्भीरतापूर्वक उल्लेख हुआ है तो लोगो ने उसके शिल्प की ही प्रशंसा की है ।
* मुझे जीवन मे कभी कहीं थोडा सुख और आराम मिले भी, तो मुझे लगता है कि कोई गलत बात हो गयी है । अकेला जीवन जीनेवाले व्यक्ति को कष्ट में रहना ही स्वाभविक लगने लगता है ।
* बमबारी का आघात सहकर भी विकटोरिया के जमाने के वे भदे और मजबूत शीशे ज्यों-के-त्यों-खडे रहे थे--कुछ उसी तरह जैसे उस जमाने के लोग ऎसे अवसर पर खडे रहते ।
* वाल्टर बेसेण्ट से बात करते हुए एक बार हेनरी जेम्स ने कहा था कि यदि किसी लडकी को एक ब्रिगेड के सम्बन्ध में उपन्यास लिखना हो और लिखने की प्रतिभा उसमें हो, तो गार्ड की बैरकों में जाकर वह एक बार बावर्चीखाने की खिडकी से अन्दर झाँक ले तो उसे अपने लिए पूरा मसाला मिल जायेगा । मगर मेरा खयाल है कि लिखते समय जरा विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए शायद उसका किसी सिपाही के पास जाकर एक रात सोना भी जरुरी होगा ।
* सहवास के क्षणों के बाद जब व्यक्ति का मन भर जाता है खामखाह उसका हुज्जत करने को मन होने लगता है ।
* मनुष्य, मै समझता हूँ कि, एक बहुत ही टेढी चीज है और लोग कहते है कि ईसे ईश्वर ने बनाया है ! ईश्वर ने बनाया होता तो वह दो और चार की तरह सरल और वायु की तरह साफ न होता ?
* जब व्यक्ति को अपने को सुख नहीं मिलता तो उसे दूसरों के सुख से ईर्ष्या होने लगती है ।
* वह दु:ख की पाठशाला में पढकर अपना प्रमाणपत्र ले चुका था ।
* धोखा खाया हुआ पति मजाक का विषय होता है, धोखा खाया हुआ प्रेमी नहीं । बल्कि वह एक सम्मानित व्यक्ति ही समझा जाता है । साहित्य भी उसीका पक्ष लेता है । धोखा खाये हुए प्रेमी का दु:ख दु:ख ही समझा जाता है, उपहास का विषय नहीं । तुम ट्रायलस का उदाहरण ले लो ।
* व्यक्ति अन्दर से खुश हो तो वह किसी भी प्रतिबन्ध को स्वीकार कर लेता है ।
* सुख की अपेक्षा दुख की अनुभूति को व्यकत करना कहीं आसान है । दुख में हम अपने अस्तित्व के प्रति बहुत सचेत हो जाते है, चाहे यह ईस क्रूर अहंभाव के रुप में ही हो कि यह पीडा मेरी अपनी है, यह स्नायु जो फडकता है मेरा ही है, किसी और का नहीं । परन्तु सुख ईस अहंभाव को मिटा देता है और हम अपना अस्तित्व उसमें खो देते है । सन्तों ने ईश्वर के साक्षात्कार का वर्णन करने के लिए मानवीय प्रेम की शब्दावली का प्रयोग किया है, और में समझता हूँ कि उसी तरह हम भी एक नारी के लिए अपने प्रेम-भाव की तीव्रता को प्रकट करने के लिए उपासना,मनन और चिंतन आदि शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं । हम भी उसी तरह अपने प्रेम में स्मृति,बुध्धी और विवेक खो बैठते है,उसी तरह विरह का अनुभव करते है और कभी-कभी वैसी ही शांती प्राप्त करते है । रति-व्यापार को तो लघु-मृत्यु की संज्ञा दी ही जाती है पर प्रेम करनेवाले कई बार ईसी तरह लघु-शांति का भी अनुभव करते है । वैसे यह सब लिखते हुए मुझे बहुत विचित्र लग रहा है । ईससे तो लगता है जैसे वास्तव में मुझे सैरा से घुणा न होकर प्रेम हो । कभी-कभी मुझे स्वयं अपने विचारों का पता नहीं चलता । 'अन्धकारमयी रात्रि और प्रार्थना जैसी चीजों का भला मुझे पता ही क्या है, क्योंकि मेरा मन तो केवल एक ही प्रार्थना जानता है । मुझे ये शब्द उसी तरह विरासत में मिले है जैसे कि पत्नी की मृत्यु हो जाने पर पति के पास उसके वस्त्र,सुगन्धियाँ और क्रीम की शीशियाँ पडी रह जाती है, जिनका उसके लिए कोई भी उपयोग नहीं होता । फिर भी मन में शांति की अनुभूति तो थी ही ।
* प्रेम में अनिश्चितता ही सबसे बुरी चीज है । ईससे शायद वह घोटाले का ब्याह ज्यादा अच्छा है, जिसमें कामना नाम की चीज होती ही नहीं । अनिश्चितता बात को कुछ-का-कुछ रुप दे देती है और विश्वास का गला घोट देती है. जो शहर बुरी तरह घिरा हो, उसमें हर सिपाही से द्रोह की आशंका हो सकती है ।
* व्यक्ति कुबडा हो या लूला हो, उसके पास वह अस्त्र तो होता ही है जिससे वह किसी को अपने प्रेम का लक्ष्य बना सकता है ।
* कई बार आराम से बिस्तर में सोने की बजाय चादर के अनुसार टाँगें फैलाने में अधिक सुख मिलता है ।
* मैने प्रेम सें अधिक अपने विश्वास से संघर्ष किया है परन्तु अब वह संघर्ष भी शेष नहीं है ।
* मै एक उपन्यास लिख रहा होता तो यहाँ आकर अब समाप्त कर देता, क्योंकि उपन्यास का तो एक अन्त होता ही है । कम-से-कम अब तक मै यह सोचता रहा हूँ । परन्तु मेरे उस यथार्थवाद में कही दोष है, क्योंकि अब मुझे लगता है कि जीवन में किसी चीज का भी नहीं होता । रसायन-शास्त्री कहते है कि कोई चीज कभी पूरी तरह नष्ट नहीं होता और गणितज्ञों का कहना है कि एक कमरा पार करने में हर कदम आधा करते जाओ तो कभी भी सामने की दीवार तक नहीं पहुँच सकते । ईसलिए यह सोचना कि यह कहानी यहाँ समाप्त हो जाती है.
* यदी ईस सब में विश्वास करुं तो मुझे तुम्हारे ईश्वर में भी विश्वास करना होगा । उससे प्रेम करना होगा ।परन्तु मैं तुम्हारे साथ सोनेवाले व्यक्ति से प्रेम कर सकता हूँ, उससे नहीं ।
* मेरे अन्दर उतनी घृणा नहीं है जितना भय है । यदी ईश्वर है और तुम्हारे जैसा व्यक्ति भी--वासना,व्यभिचार और झुठ का जीवन बिताने के बाद--एक छलाँग लगाकर सन्तों की श्रेणी में आ सकता है तो हममें से कोई भी व्यक्ति सन्त बन सकता है । आवश्यकता केवल आँख मूँदने और छलाँग लगाने की है । ईश्वर हममें से किसी से भी कह सकता है--कूद जाओ । परन्तु नहीं, मै नहीं कूदूँगा ।
और बिस्तर पर बैठकर मैने ईश्वर से कहा कि तुमने सैरा को ले लिया है परन्तु अभी मुझे नहीं पा सके । मुझे पता है तुम बहुत धूर्त हो । तुम्हीं हो जो हमें शिखर पर ले जाकर सारा विश्व दे देने का लोभ दिखाते हो । तुम्हीं शैतान हो जो हमसेँ कूद जाने को कहते हो परन्तु मुझे न तुम्हारी शांति चाहिए और न हीं तुम्हारा प्रेम चाहिए । मै एक छोटी और साधारण-सी-चीज चाहता था और वह यह कि सैरा जीवन-भर के लिए मेरे पास बनी रहे । परन्तु उसे तुमने मुझसे छीन लिया है । तुम चालबाज हो । जिस तरह फसल का रखवाला चूहों के बिल नष्ट करता है उसी तरह तुम हमारा सुख हमसे छीन लेते हो । मुझे तुमसे घृणा है, उतनी ही घृणा है, जितनी सचमुच तुम्हारा अस्तित्व होता होता तो तुमसें होती ।
* मै तुमसे प्रेम करता था तो भी क्या तुमसे घृणा नहीं करता था ? और क्या अपने से भी मै घृणा नहीं करता ?
* हे ईश्वर, तुमने मुझे बहुत सता लिया है और मेरा बहुत कुछ मुझसे छीन लिया है । मै अब ईतना पक चुका हूँ और ईतना थक गया हूँ कि मै प्रेम करना नहीं सीख सकता । मुझे तुम मेरे हाल पर ही छोड दो !
Read book review : The End of the Affair
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1 Comments:
bhai ashokji
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