Monday, October 22, 2007

punin and baburin - स्वाभिमानी

Punin and Baburin.
By.
Ivan S. Turgenev.
स्वाभिमानी.
लेखक : तुर्गनेव.

"स्वाभिमानी" उपन्यास रशिया के प्रसिध्ध महान लेखक "तुर्गनेव" की रचना है जिसके प्रधान नायक बैबूरिन एक प्रजातन्त्रवादी है और आगे आनेवाले निहिलिस्ट याने शुन्यवादी विचारधारा माननेवाले का पूर्वज था । जिस तरह "पिता और पुत्र"(तुर्गनेव का प्रसिध्ध उपन्यास) के बैजेरोव का गुण है वही गुण बैबूरिन मे पाया जाता है । ईस उपन्यास में बैबूरिन एक जगह कहते है--"लोग ईस आशा में दिन काट रहे है कि शायद एक दिन अवस्था सुधर जाय और हम स्वाधीनतापूर्वक रहते हुए स्वतन्त्र वायुमण्डल में स्वच्छन्दता के साथ सांस ले सकें, पर यहां तो मामला बिल्कुल उल्टा ही नजर आता है--हर तरफ हालत दिन-पर-दिन बिगडती ही जा रही है । हम निर्धनों का शोषण करके धनवानों ने हमें बिल्कुल खोखला बना डाला है । अपनी जवानी में मेने धैर्यपूर्वक सबकुछ बर्दाश्त किया । उन्होंने मुझे पीटा भी, हां, मेरे जैसे वृध्ध पुरुष को शारीरिक दण्ड दिया गया । दूसरे अत्याचारों का में जिक्र नहीं करुंगा । किंतु क्या सचमुच हमारे सामने ईसके सिवा और कोई दूसरा उपाय नहीं कि हम फिर उन पुराने दिनों की याद करें ? ईस समय नवयुवकों के साथ जैसा व्यवहार हो रहा है, उससे तो धैर्य की सीमा का भी अतिक्रमण हो जाता है । उससे सहनशीलता की हद हो चुकी है ।" ईस उपन्यास का हिन्दी रुपांतर जगन्नाथप्रसाद मिश्र ने किया है.
*"तुम उसे अपनी दरियादिली के कारण रखते हो ?"
"जी नहीं, न्याय के कारण, क्योंकि एक निर्धन व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह दूसरे निर्धन की सहायता करे ।"
"सचमुच ! यह पहला मौका है, जब मैने यह बात सुनी है । अबतक तो मेरा भी यही ख्याल था कि यह काम धनवान व्यक्तियों का है ।"
"यदी धृष्टता न समझी जाय तो मैं कहूंगा कि धनवान व्यक्तियों के लिए यह एक मनोरंजन का साधन है, किन्तु हमारे जैसे लोगों के लिए तो..."
* जीवन में अशांति के भय निरन्तर लगे ही रहते है, आत्मा विभ्रांत बनी रहती है ।...
* किंतु जब कोई व्यक्ति बनावट से विह्वल होकर बातें करने लगता है, उस समय उसकी भाषा भी अधिकाधिक प्रांजल हो उठती है ।
* निर्धनों का स्वभाव ही यह हुआ करता है कि उनके मस्तिष्क जल्दी उत्तेजित हो जाते है ।
* "मै किसी रईस अर्थात धनवान के आने पर विशेष प्रसन्न नहीं होता " बैबूरिन ने कहाँ.
* "जीनो", बैबूरिन ने विचारपूर्ण स्वर में फिर कहना शरु किया, "एक ऎसा बुध्धिमान मनुष्य था, जिसका कथन था कि कष्ट सहन करना कोई पाप नहीं है, क्योंकि सहनशीलता सभी वस्तुओं पर विजय प्राप्त करती है, और ईस संसार में अच्छी चीज एक ही है, वह है न्याय । पुण्य भी न्याय के सिवा और कुछ नहीं है ।"
* यह तो एक जानी हुई बात है कि किसी खतरनाक खाई-खन्दक के ऊपर बिलकुल किनारे पर चलना स्त्रियों का एक प्रिय कौतुक है ।
* "सर्दी से ठिठुरकर मरने की अपेक्षा जलकर मरना कहीं अच्छा है ! तुम...अपनी नेक सलाह अपने पास ही रखो ।
* साईबीरिया से मानसी ने मुझे लिखा था--"बैबूरिन नहीं चाहता था कि मै उसके साथ यहां आऊं, क्योंकि उसके विचारों के अनुसार किसीको अपने व्यक्तित्व का दूसरे के लिए बलिदान नहीं करना चाहिए । हाँ, अपने उदेश्य के लिए बलिदान करना दूसरी बात है.

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Wednesday, October 17, 2007

The Kreutzer Sonata प्रेम या वासना

The Kreutzer Sonata.
By.
Leo Tolstoy.

प्रेम या वासना.
लेखक : लियो टोलस्टाय.

* "यह उतना ही नामुमकिन है जितना यह उम्मीद करना कि जब किसी छकडे में मटर लादे जा रहे हों तो पहले से चुनी हुई दो मटर की फलियाँ एक-दुसरे के पास-पास ही गिरेंगी । ईसके अलावा मर्द और औरत के सबंध में संभावना के सिध्धांत की बजाय थकान का सिध्धांत ज्यादा काम करता है । जीवन-भर एक ही मर्द या औरत को प्रेम करना- वाह, यह तो ऎसा ही है जैसे किसी मोमबती से जीवन-भर जलने की उम्मीद की जाए !
* मै हर औरत के लिए और औरत की नग्नता के लिए तडपता था । एकांत में मेरे विचार पवित्र नहीं थे । मुझे वही यातनाएं झेलनी पडी । जिन्हे हमारे निन्या-नवे फीसदी लडके झेलते है ।
* एक औरत को कलंकित करने की जिम्मेदारी में मेरा हिस्सा था । मैनें अपने बडे-बुढों से कभी नहीं सुना कि मैनें जो काम किया वह गलत था । न ही आज-काल यह बात सुनने में आती है । यह सच है कि दस ईश्वरीय आदेश हमें बताते है कि यह काम गलत है, परंतु हम वे दस आदेश सिर्फ ईसलिए सीखते है ताकि बाईबल की परीक्षा में हम पादरी को सही जवाब दे सके, और फिर यह ज्ञान उतना महत्वपूर्ण भी नहीं है, जितना कि लेटिन भाषा में शर्तवाले वाक्यांशों में "उत" का ईस्तेमाल.
* विवाह हमेंशा ऎसे लोगों में होती है और होती आई है, जो विवाह में कोई ने कोई पवित्रता ढूंढते है, ऎसी पवित्रता जिसमें कर्तव्य हों और वे उन कर्तव्यो के लिए ईश्वर के प्रति जिम्मेदार हों । ऎसे ही लोगो में ये विवाहे होती है, परंतु हमारे वर्ग में नहीं होती । हमारे लोग विवाह में शारीरिक संबध के अलावा और कोई चीज नहीं देखते, ईसलिए उनका विवाह या तो एक मजबूरी साबित होती है या धोखा । ईन दोंनो पापों में धोखा अपेक्षाकृत छोटा पाप है । पति और पत्नी दूसरों को यह धोखा देते है कि उनका प्रेम एकनिष्ठ है, जबकि दरअसल वे वफादार नहीं है । यह धोखा बुरी चीज हैं, फिर भी ईसे सहन किया जा सकता है । परंतु आम तौर पर ऎसा होता है कि पति-पत्नी सारा जीवन एक-दुसरे के साथ रहने की जिम्मेदारी उठाते है, और एक महीने के बाद एक-दूसरे से नफरत करने लगते है, एक-दूसरे से अलग होने के लिए बेचैन हो उठते है, फिर भी एकसाथ रहते है । ईसका परिणाम वह अकथनीय मर्मांतक पीडा होती है, जिससे मजबूर होकर लोग शराब पीते है,आत्महत्या करते है, कत्ल करते है, स्वय़ं विष खाते है या एक-दूसरे को विष देते है ।
* अपनी खोई सरलता के लिए, औरतों के साथ उस सबंध के लिए, जो हमेंशा के लिए नष्ट हो गया था । हां, एक प्राकुतिक, सीधा-सादा सबंध हमेंशा के लिए नष्ट हो गया था । उस समय के अत: से यह सबंध पवित्र नहीं रहा, न रह ही सकथा था । जिसे लंम्पट कहते है, मै वह बन गया । लम्पट व्यक्ति की शारीरिक देखाव शराबी, सिगरेट पीनेवाले या नशेबाज जैसी होती है । जिस तरह शराबी,सिगरेट पीनेवाला या नशेबाज नोर्मल व्यक्ति नहीं होता, उसी तरह वह व्यक्ति भी, जो सुख के लिए बहुत-सी औरतो के साथ सो चुका है, नोर्मल व्यक्ति नहीं होता । वह हमेंशा के लिए खराब हो जाता है, उसीको लंम्पट कहते है। जिस तरह किसी शराबी या नशेबाज को उसके चेहरे और व्यवहार से पहचाना जा सकता है उसी तरह लंम्पट व्यक्ति को भी पहचाना जा सकता है । लंम्पट व्यक्ति अपने गुनाह के साथ लड सकता है, उसपर काबु पा सकता है, परंतु जीवन में फिर कभी वह औरतो के साथ एक पवित्र,उज्जवल और सीधे-सादे सबंध को नहीं जान सकता--भाई जैसे सबंध को । लंम्पट व्यक्ति किसी नौजवान औरत को जिस द्रष्टि से देखता है, उसीसे वह पहचाना जाता है । और मैं लंम्पट बन गया, और तभी से लंम्पट बना रहा । ईसीसे मेरा सर्वनाश हुआ ।
* सब उपन्यासों में हीरो की भावनाओं का, फूलों का और उस तालाब का विस्तृत वर्णन रहता है, जिसके किनारे हीरो टहलता है । परंतु किसी नौजवान औरत के लिए सुंदर हीरो के मन में जो महान प्रेम उत्पन्न होता है, उसका वर्णन करते हुए उपन्यासकार यह नहीं बताते कि विवाह से पहले हीरो ने अपना जीवन कैसे बिताया--वे चकलों की वेश्याओं, घरों की नौकरानियों , बावर्चिनों और दूसरे लोगों की पत्नियों का जिक्र नहीं करते, जिनके साथ हीरो का सम्बन्ध रह चुका है । और जब भी ऎसे अश्लील उपन्यास लिखे जाते है, तो उन्हे उन लोगों के हाथों में नहीं दिया जाता, जिन्हे ऎसी पुस्तको की सबसे ज्यादा जरुरत है--यानी निर्दोष नौजवान युवतियों के हाथों में । पहले तो तो बडे-बूढे नौजवान युवतियों को ईस भ्रम में रखते थे कि दुराचार नाम की कोई वस्तु ही नहीं होती, जबकि हमारे नगरों और यहां तक कि गांवो की भी आधा जीवन ईसीमें पसार होता है ; अत: में वे लोग ईस दिखावे के ईतने आदी हो गए कि अंग्रेजो की तरह वे भी प्रमाणिकता से ईस बात में विश्वास करने लगे कि एक ऊंचे नैतिक आदर्शोवाले संसार में रहनेवाले वे ऊंचे नैतिक आदर्शो के लोग है, और बेचारी नौजवान युवतियों ईस झूठ में गम्भीरता से विश्वास करती है ।
* वह जानती है कि हम मर्द उदात्त भावनाओं की जो बातें करते है, वे झूठी होती है ; हम सिर्फ शरीर को चाहते है । ईसलिए हम औरत के गुनाहों को तो माफ कर सकते है परंतु कुरुप,ढीले-ढाले कुरुचिपूर्‍र्ण गाउन को हरगिज् माफ नहीं कर सकते । वेश्या ईस बात के प्रति सचेत रहती है परंतु जानवर की तरह किसी भी मासूम नौजवान लडकी को ईस बात का सहज ज्ञान होता है ।
* मैने पूछा, "परंतु मानवजाति फिर कैसे बनी रहेगी ? "
"मानवजाति कैसे बनी रहेगी ?" उसने व्यंग-भरी आवाज में ईस तरह दुहराया जैसे उसे पहले से ही विश्वास था कि यह आम और लज्जाप्रद प्रश्न पूछा जाएगा । "बर्थ कंट्रोल का प्रचार आसान है,ताकि अंग्रेज रईसों के पेट भरने के लिए चीजों की कमी न हो, बर्थ कंट्रोल का उपदेश आसान है, ताकि अप्रिय परिणामों के बगैर ही व्यक्ति मजे लूट सके ; परंतु ज्योंही कोई नैतिकता के नाम पर बर्थ कंट्रोल का प्रचार करने के लिए मुंह खोलता है तो--औह, कितना शोर मचाया जाता है ! यदी एक या दो दर्जन व्यक्ति फैसला करें कि वे सूअरों जैसी जीवन बसर करके ऊब गए है, तो प्रश्न पूछा जाता है कि मानवजाति कैसे बनी रहेगी ?
* "औरतो का शासन से आपका क्या अर्थ है ? मैने पूछा, "न्याय तो मर्द को ज्यादा अधिकार देता है ।"
"हां,हां, यही बात है । उसने बीच में टोटक्कर कहा, "मै आपको यही बताना चाहता था । ईसीसे आपको औरतो का शासन के असाधारण व्यापार का कारण समझ में आएगा ; औरत अपमान के निम्नतम स्तर पर पहुंची हुई है, फिर भी मर्द पर शासन करती है, जिस तरह यहूदियों को जो अत्याचार सहना पडता है उसकी कसर वे अपने पैसे की ताकात से पूरी कर लेते है । यहूदी कहते है, "अच्छा, तो तुम चाहते हो हम सूदखोर के सिवा कुछ न रहें, क्यों ? अच्छी बात है, हम सूदखोर बनकर ही तुम्हारे ऊपर शासन करेंगे । औरतें कहती हैं, "आह, तुम चाहते हो हम सिर्फ विलास की सामग्री बनी रहें ? अच्छी बात है, विलास की सामग्री बनकर ही हम तुम्हें अपना गुलाम बनाएंगी ।' औरत के अधिकारों से वंचित रहने का अर्थ यह नहीं कि उसे वोट देने का अधिकार या जज बनने का अधिकार नहीं--ईन कामों को करना किसी अधिकार का सूचक नहीं । सेकस का जीवन में औरत को यह बराबरी का अधिकार नहीं मिला कि वह अपनी ईच्छा से किसी व्यक्ति से प्रेम करे या असंमति कर दे, उसे यह अधिकार भी नहीं कि पसंद की जाने की बजाय वह खुद किसी मर्द को पसंद करे ।
"आप कहेंगे कि यह मर्दो के साथ ज्यादती है । अच्छी बात है । तब मर्दो को भी यह अधिकार हासिल नहीं होना चाहिए । ईस समय औरतों को उसे अधिकार से वंचित रखा गया है जो मर्दो को हासिल है । ईसलिए ईस अधिकार के छीने जाने की कसर औरत मर्द की वासनाओं को उभारकर पूरा करती है, वह उन्हें ईस हद तक उभार देती है, और ईसी जरिये उसपर शासन करती है कि मर्द का किसी औरत को चुनना केवल एक औपचारिकता रह जाती है, असली चुनाव तो औरत करती है । अपना उद्देश्य की पूर्ति के साधन एक बार मिल जाने पर वह ईसका फायदा उठाती है और सब लोगों पर अपनी ईस भयंकर शक्ति का प्रयोग करती है ।"
"अंत यह भयंकर शक्ति किस वस्तु में रहती है ?" मैने पूछा ।
"किस वस्तु में ? हर वस्तु में, हर जगह । किसी भी बडे शहर की दुकानों में जाकर देखो । लाखो हाथ--असंख्य हाथ उन वस्तु को बनाने में महेनत करते है जो उन दुकानों में सजी हुई हैं । और जरा देखिए ! क्या दस में से नौ ऎसी दुकानो में मर्दो के प्रयोग की कोई वस्तु मिल सकती है ? जीवन की हर विलासिता की सामग्री की मांग और उसका उपभोग औरतें करती है । फेक्टरियों की गिनती कीजिए । उनमें से अधिकांश व्यर्थ के गहने, गाडियां, फर्निचर और औरतों के लिए तरह-तरह का सामान तैयार करने मे लगी है । करोडो व्यक्ति, गुलामों की कई पीढियां, औरतों की सनकों को संतृष्ट करने के लिए ईन क्रृर फैक्टरियों में काम करके थकान से चूर हो जाते है । रानियो की तरह औंरतो ने मानवजाति के नौ बटे दस हिस्से को गुलामों की तरह महेनत करने के लिए मजबूर किया है । ईसलिए, क्योंकि मर्दो ने उन्हे अपमानित किया है और उन्हें बराबरी के अधिकार नहीं दिए, ईसलिए वे हमारी वासनाओं को जागरित करके हमें फंदे में फसाकर अपना बदला लेती है । हां, सारी बातों की यही कारण है ।औंरतो ने अपने-आपको मर्दो की वासना जगाने का ईतना प्रभावशाली साधन बना लिया है कि उनकी प्रस्तुती में मर्द अपने चित की स्थिरता को कायम नहीं रख सकतें । औरत के निकट आते ही मर्द जड हो जाता है, जैसे किसी नींद की दवा का असर हो । पहले जब मैं किसी औरत को नाच के गाउन में सजा देखता था, तो मेरे मन में बेचैनी होती थी और मै दुम हिलाने लगता था । अब मुझे भय महसूस होता है । मुझे ऎसी औरत खतरनाक और गैरकानूनी वस्तु मालूम होती है । फौरन जी में आता है कि मै चिल्लाकर सहायता के लिए पुलिस को बुलाऊं और मा6ग करु कि उस खतरनाक वस्तु को वहां से हटाकर हवालात में बंद कर दिया जाए । आप हंस रहे है ? वह झल्लाया ।
"यह हंसी की बात नहीं । मुझे विश्वास है कि कभी ऎसा समय आएगा-शायद जल्द ही आएगा-जब लोग ईस बात को समझेंगे और उन्हे ताज्जुब होगा कि कभी ऎसा समाज भी था, जिसने औरतों को छूट दे रखी थी कि वे मर्दो की वासनाओं को जागरित करने के साफ ईरादे से सज-धजकर समाज की शांति को भंग करती थी । यह तो मर्दो के रास्ते पर फंदे बिछाने जैसी वस्तु हुई । उससे भी बदतर ! भला ऎसा क्यों है कि जुए के खेल पर पाबंदी है परंतु मर्दो की वासना भडकानेवाली वेश्याओं जैसी सजधज और पोशाकों पर कोई पाबंदी नहीं, जो हजारगुना ज्यादा खतरनाक है !"
* मै एक खंडहर हूं, नष्ट हो चुका हूं । परंतु मेरे पास एक वस्तु है, वह है ज्ञान । हां, मुझे वे बातें मालूम है, जिन्हें सीखने में दूसरों को बहुत समय लगेगा ।
"मेरे बच्चे जिन्दा हैं और बडे होकर असभ्य और बर्बर बनेंगे, दूसरे सभी लोगों की तरह । मै उनसे तीन बार मिला हुं । मै उनकी कोई सहायता नहीं कर सकता । मैं दक्षिण की तरफ जा रहा हूं । वहां मेरा एक छोटा-सा मकान और बाग है ।
* "किसानों और मजदूरों को बच्चों की जरुरत महसूस होती है ; बच्चों को खिलाना चाहे उनके लिए कितना ही मुश्किल क्यों न हो, वे उन्हे जरुरी समझते है ; ईसलिए उनके दाम्पत्य जीवन के औचित्य का आधार है । परंतु हम कुलीन लोग बिना जरुरत के ही बच्चे पैदा करते है । वे फिजूल की परेशानी पैदा करनेवाले जीव है उनपर खर्च पडता है । विरासत का दावा करनेवाले वे अवांछनीय प्राणी है, एक बोझ है ।

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