Wednesday, December 06, 2006

Anna Karenina - अन्ना केरीना

Anaa Karenina.
By.
Leo Tolstoy


"अन्ना कारेनिना" में रुसी जीवन की सामाजिक, आर्थिक और नैतिक समस्याओ को बताया गया है जो आज-कल हमारे भारत में भी ईसी तरह की समस्याओ है, जीवन की उन समस्याओ जिसे हम नैतिकता कहेते है और वही नैतिकता का "अन्ना" भंग करती है याने बाह्यतर संबध जो समाज को स्वीकार नहीं है.कया "अन्ना" हमारे समाज में नहीं है ? मेरे ही मोहल्ले में एसी 3 अन्ना को जानता हुं जो अपने पति से प्रेम न पाकर दुसरे से सबंध रखती है.
हमारे समाज में भी पुरुष एसी सोच रखते है के पत्नी को पतिव्रता रहेना चाहिए परंतु पति को पत्नीव्रता नहीं रहेना चाहिए.सबको सीता जैसी पत्नी चाहिए परंतु वो राम नहीं बनना चाहते.
ईस उपन्यास के कुछ वाक्य :

*धर्म आबादी के बर्बर भाग की लिये ही लगाम है और सचमुच छोटी-सी प्रार्थना के समय खडे रहेने पर भी उसकी टांगों मे दर्द होने लगता था और वह किसी तरह भी यह नहीं समझ पाता था कि दुसरी दुनिया के बारे में ईतने भयानक और भारी-भरकम शब्द किसलिये कहे जाते है ? जबकि ईस दुनिया में ही बडे मजे का जीवन बिताया जा सकता था और जो लोग अपनी जाति की नसल का अभिमान करते है वै लोगो को अपने सबसे पहले पूर्वज यानी बंन्दर से भी ईन्कार नहीं करना चाहिये.
* "और मरियम मगदलीनी ?"
"ओह, हटाओ ! ईसा मसीह नें उसके बारे में कभी वे अच्छे शब्द न कहे होते, यदि उन्हें यह मालुम होता कि उनका ईतना अधिक दुरुपयोग किया जायेगा.
* नोर्डस्टोन और लेविन के बीच ऊंचे समाज में हमेंशा पाये जानेवाले एसे सम्बन्ध कायम हो गये थे, जब दो व्यक्ति बाहरी तौर पर मैत्री भाव दिखाते हुए भी एक-दूसरे से ईस हद तक धुणा करते है कि एक-दूसरे के साथ गम्भींर व्यवहार भी नहीं कर सकते और नाराज भी नहीं हो सकते.
* उसकी पीटर्सबर्गी दुनिया में सभी लोग एक दुसरे के बिल्कुल विपरीत दो किस्मों में विभाजित थे. एक घटिया किस्म तो वह थी जिसमें ऎसे तुच्छ,मुर्ख और सबसे बढकर तो यह कि वे हास्यास्पद लोग शामिल थे, जो ऎसा मानते है कि पति को अपनी विवाहिता पत्नी के साथ ही रहना चाहिये.
* "आह, ये सहानुभूति के प्रदर्शन ही सबसे ज्यादा भयानक होते है".
* आन्ना के मेल-जोल का दुसरा दायरा वह था, जिसके जरिये उसके पति कारेनिन ने अपनी नौकरी में तरक्की की थी......तीसरा, आखिरी दायरा, जिसके साथ उसके सम्बन्ध थे,बाँलो,दावतो और शानदार पोशाको का दायरा था. यह वह कुलीन-समाज था, जो एक हाथ से दरबार को थामे रहता था, ताकि अपने से नीचे समाज में न खिसक जाये. ईस कुलीन-समाज के लोग अपने ख्याल में ईस नीचेवाले समाज को तिरस्कार की दृष्टि से देखते थे किंतु उसके साथ उनकी रुचिया न केवल मिलती-जुलती ही बल्कि सर्वथा समान थी.
* नहीं, हदय तो कुछ बताता है परंतु आप सोचिये, आप मर्द लोग किसी लडकी में दिलचस्पी महसुस करते है,आप उसके घर जाते है, उसके निकट होते है, उसे देखते-भालते है, ईस बात की प्रतिक्षा करते है कि आपकी पसन्द पूरी हो रही है, आप सगाई-विवाह का प्रस्ताव करते है.
"बात पूरी तरह तो ऎसी नहीं है.
"फिर भी आप विवाह का प्रस्ताव तभी करते है जब आपका प्रेम परिपक्व हो जाता है या जब चुनाव के लिये आपके सामने प्रस्तुत दो लडकियों में से एक का पलडा भारी हो जाता है परंतु लडकी सें कोई नहीं पूछता. ऎसा चाहा तो जात है कि वह खुद अपना साथी चूने परंतु वह खुद चुनाव नहीं कर सकती और सिर्फ हाँ या ना में ही जवाब दे सकती है".

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