Wednesday, October 18, 2006

Moby Dick - लहरों के बीच

Moby Dick
By.
Herman Melville.


हरमन मेलविल अमेरीकन साहित्यकार थे और उसकी प्रसिध्ध उपन्यास मोबी डिक याने लहरों के बीच विश्व साहित्य मे एक अनोखा स्थान रखती है. यादवचन्द्र ने ईनका अनुवाद हिन्दी मे किया है,ईस उपन्यास के बारे में समरसेट मोम ने ईसे संसार के श्रेष्ठतम दस उपन्यासों में मान है.
कथा के सम्बन्ध मे हरमन मेलविल ने एक स्थान पर स्वयं कहते है कि उसने "धूर्तताओ से पूर्ण एक पुस्तक लिखी है परंतु वह एक भेड की तरह दुधिया,स्वच्छ और पवित्र है.
ईस कथा संमुदर में व्हेल शिकार के जहाज और उसके जीवन का विवरण है और आज के युग में हम ईस काम को याने व्हेल के शिकार को अच्छा नहीं मानते और किसी भी प्राणी कि हत्या नहीं करनी चाहियें परंतु ईस कथा लिखी गई तब लोग एसा नही मानते थे.आज भी कुछे लोग व्हेल का शिकार करते है और हमें जाग्रुत होंके, शिकार को बंध कराना चाहिये.
ईसी कथा में एक पात्र आता है कवीकेग, ये एसा पात्र है जो गीता मे बताया गया स्थितप्रज्ञ जैसा है.
ईसी उपन्यास के कुछ वाकय :
* जो भी हो, हंसना तो बहुत ही उपयोगी चीज है जिसका प्राप्त होना भी उतना सरल नहीं है.जीवन में दु:ख ही अधिक है.और यदि कोई व्यक्ति अपने ढंग से सही अच्छे मजाक करता है तो उसे हतोत्साहित नहीं करना चाहिए.
* मैने यह देखा कि कवीकेग सराय मे अधिक लोगों से धुलता-मिलता नहीं था. मै सोच रहा था कि यह व्यक्ति अपने घर से 20 हजार मील दूर हार्न अन्तरीप होता हुआ आया है क्योंकि वह केवल उसी रास्ते से आ सकता था. वह एक अजनबी की तरह उन लोंगो के बीच जैसे बृहस्पति ग्रह के देश मे आ गया था, किंतु फिर भी अपने में मग्न था.निश्चित ही यह एक प्रकार की दार्शनिकता थी. भले ही उसका नाम उसने कभी न जाना हो.सही मानों में दार्शनिक होंने के लिए हम नश्वर प्राणियों के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन के प्रति न विशेष सजग रहे, न कर्मशील. जब मै कभी सुन पाता हुं कि अमुक व्यक्ति दार्शनिक है तो में समज लेता हुं कि एक मंदाग्नि और अजीर्ण रोग से पीडित बुढिया की भांति उसने भी अपने हाजमे को जरुर बिगाड रखा होगा.
* कवीकेग ने बताया कि मन में वह केवल यही सोचता रहा था कि वह ईसाईयों के निकट जाकर वह कौशल सीखे जिससे वह भी अपने लोगो को अधिक सुखी और अधिक प्रगतिशील बना सके किंतु अफसोस, व्हेल-शिकारियों के क्रियाकलापो से उसे जल्दी ही मालुम हो गया कि ईसाई लोग भी दु:खी और बदमाश है और उसने सारी आशा छोड दी. अपने ईतने अनुभव से उसने समज लिया कि विश्व सारा चालाक है ईसलिए वह जीवन भर मूर्ति पूजक ही रहेगा.
* एक झगडा नीचे और एक झगडा उपर .ईश्वर और मानवी--दोनों उपद्रवी--दोनो झगडालू ! दुष्ट.
*उसकी वर्तमान पीडा का एकमात्र कारण था पिछ्ली चोट. आहाब सोचता था की जिस प्रकार झाडी में बहुत जहरीला सांप और मीठे गीत गाने वाली चिडिया दोंनों ही अपनी-अपनी जाति को बढाते रहेते है उसी प्रकार कोई पीडाप्रद घटना दूसरी पीडाप्रद घटना को जन्म अवश्य देती है. और वह भी समान रुप से नहीं.आहाव सोच रहा था क्योंकि दु:ख की आगे और पीछे की पीढियां सुख की आगे और पीछे की पीढियां से कहीं अधिक लम्बीं होती है.महान से महान सांसरिक सुख में भी अदश्य वेदबा दबी रहती है.
* विपति पर विपति ! ओह मृत्य ! तू कभी समय से क्यों नहीं आती ?
* ईस अनाथ जीवनरुपी शिशु का वास्तविक पिता कहाँ छिपा हुआ है ? हमारी आत्माएं उन अनाथों की-सी है जिनकी अविवाहिता माताएं उनके गर्भ धारण करने पर ही मर जाती है. हमारी उत्पति का वास्तविक उदूगम-हमारे पितृत्व का रहस्य हमारा स्म्शान में छीपा हुआ है. वही हमकों कुछ सीखना-समझना है.

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