A House of Gentlefolk - कुलीन धराना
A Nest Of The GentryBy.Ivan Turgenev.ईवान तुर्ग्नेव रशिया के ही नहीं परंतु सारे विश्व मे प्रख्यात साहित्यकार मे एक अपना स्थान रखते है उनकी कथा "पिता और पुत्र" ऎक अनोखा स्थान रखा है और जो शुन्यवादी विचारधारा रखते है उनकी तो ये गीता है.एसी ही उनकी नवलकथा "कुलीन धराना" याने A Nest Of The Gentry जो के दु:खद प्रेम-कथा है.यही कथा का पात्र लीजा सबसे चहेता पात्र है, वह विश्व की बुराईयो को सुधारने के उदेश्य से अपने मन को शुध्ध करने और आत्म-त्याग के माध्यम से प्रायश्चित करने को लालायित थी परंतु ऎसा करके वह किसी को सुख नही पहुंचा पाती.ईसी कथा का दुसरा पात्र फयोदोर लाव्रेत्स्की जो लीजा को प्रेम करता है,वास्तव मे यह एक ऎसा व्यक्ति है जिसके लिए वैयक्तिक तथा सार्वजनिक कर्तव्य की समस्या उसके जीवन की मुख्य समस्या है, और आस्था की भावना -आस्था सत्य के प्रति,किसी उच्च आदर्श के प्रति उसकी मुख्य आवश्यकता है,वह निरंतर स्वयं अपने ढंग की गतिशीलता को खोजता रहा और वह उसे अपने किसानों के जीवन को क्यवस्थित करने में मिली.लीजा के विपरीत,लाव्रेत्सकी सुख और कर्तव्य की कल्पनाओं को एक-दुसरे का विरोधी नही मानता,केवल प्रतिकूलपरिस्थितियों के हस्तक्षेप , और ईसके साथ ही लीजा के धार्मिक विश्वासो की जडता से विवश होकर उसने अपने वैयक्तिक सुख की हानि को स्वीकार कर लिया.तुर्गनेव को उससे सहानुभूति है परंतु निष्पक्ष भाव से ईस पात्र का विश्लेषण करने पर लेखक ईस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि एक नये ऎतिहासिक युग के व्यक्ति के रुप में लाव्रेत्सकी सर्वथा असफल रहेगा.उसमे ईच्छा-शकित,आत्म-बलिदान की भावना,दृढता का अभाव है.वह कुछ हद तक निष्क्रिय.तीन वर्ष के बाद तुर्गनेव ने प्रसिध्ध उपन्यास "पिता और पुत्र" मे एक नये ऎतिहासिक पात्र का चित्रण किया-कुलीन धराने से बाहर के बुध्धिजीवी बजारोव का.कुलीन धराना याने A Nest Of The Gentry उपन्यास के कुछ वाक्य :
* बदनसीब है वह दिल जिसने छोटी उम्र में प्रेम न किया हो !
*सबसे पहले और सबसे बढकर मै ईसे मानवी बनाना चाहता हूं.और सिर्फ मानवी नहीं बल्कि सादा और कठोर मानवी.
* शायद वह पहली बार महसूस कर रहा था कि वह कौन-सी चीज होती है जो जीवन को जीने लायक बना देती है.* मुसीबत झेलकर वीर बनना उसके भाग्य में बदा नहीं था.....हमे अपने प्रियजनों को पूरी तरह तभी समझ सकते है जब हम उनसे अलग हो जाते है.
* मेरे जीवन का सबसे अच्छा समय एक औरत से प्रेम करने में बीता * तुम आत्म-सुख के पीछे थे,तुम जीवन मे सुख चाहते थे,तुम सिर्फ अपने लिऎ जीना चाहते थे.....
* तुम सब महज पढे-लीखे काहिल हो,तुम्हे जर्मनो की कमजोरिंया मालूम है,तुम्हे मालूम है कि अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में क्या बुराई है,और तुम्हारी ईस तुच्छ जानकारी को तुम्हारे शर्मनाक निकम्मेपन को,तुम्हारी घटिया किस्म की काहिली को उचित ठहराने के लिए सबसे बडे साधन की तरह ईस्तेमाल किया जाता है,तुममें से कुछ लोग तो ईस पर फूले नहीं समाते कि वे बुध्धिमान लोगों की तरह पडे रहते है,कुछ भी नहीं करते,जबकि दुसरे लोग,बेवकूफ लोग जूतियां चटकाते रहते है. जी हां ! हमारे बीच कुछ ऎसे लाजवाब शरीफ लोग है.
* तुम्हारे अंदर आस्था नहीं है,वरना तुम्हें मालूम होता ; जहां आस्था नहीं होती,वहां ज्ञान भी प्रकट नहीं होता.मृत्यु किसी का ईंतजार नही करती और जीवन को भी ईंतजार नहीं करना चाहिये.
* यहां ! ईस समय ! रुस में ! जब हर आदमी को एक कर्तव्य पूरा करना है,भगवान के प्रति,देश के प्रति और खुद अपने प्रति,देश के प्रति और खुद अपने प्रति एक गंभीर उत्तरदायित्व निभाना है ! हम सो रहे है और समय चुपचाप बीतता जा रहा है ; हम सो रहे है...
* एक गरीब भिखारी दूसरे भिखारी को बहुत जल्दी दूर से पहचान लेता है परंतु बुढापे में उनके बीच मित्रता शायद ही कभी हो पाती है-और ईसमें कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है : उनके बीच आपस में बांट लेने के लिए कोई भी चीज तो नहीं होती,आशाएं तक नहीं.
* उसने यह दावा किया मुसीबतों की आग मे तपकर वह निखर चुका है और उसी सांस में उसने कई बार यह भी दोहराया कि वह सुखी व्यक्ति है, और उसने अपनी तुलना हवा में स्वछंद विचरनेवाले पक्षियों और कुमुदनी के फूल से की.
* "मेरे तिन आखिरी शब्द याद रखना " अपना शरीर गाडी के बाहर निकालकर और उसे संतुलित रखते हुए चिल्लाकर बोला," धर्म,प्रगति, मानवता."
* नौजवानी में अयोग्य होना तो सहन किया जा सकता है ; परंतु बुढापे में असमर्थ हो जाना बहुत ही दु:ख की बात है,सबसे बुरी बात तो यह होती है कि व्यक्ति यह महसूस नहीं करता कि उसकी शक्तियां क्षीण होती जा रही है, बुढे को ईससे बहुत तकलीफ होती होगी.
* जो कुछ पूजा था मैनेंउसको फूंक दिया है,और पूज रहा हुं उसकोजो फूंक चुका हुं....
* परंतु सुख भी तो किसी को नहीं मिल रहा है,किसी जमाने में मैं मखियों से जला करती थी-मैं सोचती थी कि ईनका जीवन बडे मजे की है-फिर एक दिन मैंने उनमें से एक को रात के समय मकडी के चंगुल मे कराहते हुए सुना ; नहीं, मैनें सोचा ,ईनकी भी अपनी मुसीबतें होती है.
* उसमें वह शांती नही थी जो मृत्य मे मिलती है,लीजा जिंदा थी और कहीं बहुत दूर.....लोबान के लहराते हुए धुंए के बीच चलती-फिरती साधुनी की पोशाक में लिपटी उस धुंधली-धुंधली पीले चेहरेवाली आकृति में उस लीजा में नाक-नक्शे की कोई बात दिखायी नहीं दे रही थी जो किसी जमाने में उसकी प्रेमिका थी....ईन आठ वर्षो के दोरान आखिरकार वह अपनी जिंदगी के उस मोड पर मुड गया था जिसे बहुत से लोग बिना मुडे ही पार कर जाते है परंतु जिसके बिना कोई भी व्यक्ति पूरी तरह शरीफ आदमी नहीं बना रह सकती.....उसने स्व्यं अपने सुख और स्वार्थ के बारे में सोचना सचमुच छोड दिया था...बुढापे में दिल जवान रखना जैसे कि कुछ लोग कहते है, मुश्किल भी होता है और कुछ हास्यकर भी ; वह व्यक्ति बहुत संतुष्ट रह सकता है जिसने नेकी में अपनी आस्था,उदेश्य के प्रति दृढता और काम करने का संकल्प न खोया हो...* लाव्रेत्स्की बाग मे चला गया, उस जानी पहेचानी बेंच पर बैठ गया और घर के सामने अपने अपने ईस बेहद प्रिय स्थान से जहां उसने अंतिम बार आनंद और उल्लास की स्वर्णिम मदिरा से चमकते और छलकाते हुए चिरवांछित सुरापात्र को पकडने का व्यर्थ प्रयास किया था, वह एक बेघर यायावर अपने जीवन का सिंहावलोकन करने लगा और बाग के पार तैरकर आती हुई उस युवा-पीढी की उल्लास -भरी शोर-गुल की आवाजें जिसने उसका स्थान ले लिया था, उसके कानों मे आती रही.वह दिल में उदासी महसूस कर रहा था परंतु उसमें कोई कटुता या व्यथा नही थी : ऎसा तो बहुत कुछ था जिसका उसे खेद था परंतु ऎसा कुछ भी नहीं था जिस पर वह लज्जित हो. "स्फूर्तिमय यौवन,खेलो,आनंद मनाओ,फूलो-फलो", उसने सोचा और उसके ईस सोचने मे6 कोई कडवाहट नही था ; "तुम्हारा जीवन तुम्हारे सामने है और तुम्हारे लिए जीवन अधिक सुगम होगा ;तुम लोगों को हमारी तरह अपने लिए रास्ता खोजना नहीं पडेगा,संघर्ष नहीं करना पडेगा,अंधेरे मे बार-बार गिरकर उठना नहीं पडेगा ; हमें जीवित रहने की कोशिश में ही सदा जूझते रहना पडा-और हममें से कितने ही ऎसे थे जो जीवित भी नहीं रह पाये !-परंतु तुम्हें एक कर्त्तव्य निभाना है, काम करना है-और हम बूढे लोगों का आशीर्वाद तुम लोगो के साथ है.मेरे लिए, आज के बाद ,ईन अनुभवो के बाद , अब केवल तुम लोगों से अंतिम विदा लेना बाकी रह गया है-और निकट आते हुए अंत और प्रतीक्षा करते हुए ईश्वर को ध्यान में रखते हुए उदास भाव से परंतु किसी ईर्ष्या या दुर्भावना के बिना केवल यह कहना "मेरे एकाकी जीवन ! धीरे धीरे जल जाओ, व्यर्थ जीवन !" .
* "और अंत ? शायद निराश पाठक पूछेगा !" बाद मे लाव्रेत्स्की और लीजा का क्या हुआ ? तो ये उपन्यास का वांचन करो....
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