Sunday, August 06, 2006

A House of Gentlefolk - कुलीन धराना

A Nest Of The GentryBy.Ivan Turgenev.

ईवान तुर्ग्नेव रशिया के ही नहीं परंतु सारे विश्व मे प्रख्यात साहित्यकार मे एक अपना स्थान रखते है उनकी कथा "पिता और पुत्र" ऎक अनोखा स्थान रखा है और जो शुन्यवादी विचारधारा रखते है उनकी तो ये गीता है.एसी ही उनकी नवलकथा "कुलीन धराना" याने A Nest Of The Gentry जो के दु:खद प्रेम-कथा है.यही कथा का पात्र लीजा सबसे चहेता पात्र है, वह विश्व की बुराईयो को सुधारने के उदेश्य से अपने मन को शुध्ध करने और आत्म-त्याग के माध्यम से प्रायश्चित करने को लालायित थी परंतु ऎसा करके वह किसी को सुख नही पहुंचा पाती.ईसी कथा का दुसरा पात्र फयोदोर लाव्रेत्स्की जो लीजा को प्रेम करता है,वास्तव मे यह एक ऎसा व्यक्ति है जिसके लिए वैयक्तिक तथा सार्वजनिक कर्तव्य की समस्या उसके जीवन की मुख्य समस्या है, और आस्था की भावना -आस्था सत्य के प्रति,किसी उच्च आदर्श के प्रति उसकी मुख्य आवश्यकता है,वह निरंतर स्वयं अपने ढंग की गतिशीलता को खोजता रहा और वह उसे अपने किसानों के जीवन को क्यवस्थित करने में मिली.लीजा के विपरीत,लाव्रेत्सकी सुख और कर्तव्य की कल्पनाओं को एक-दुसरे का विरोधी नही मानता,केवल प्रतिकूलपरिस्थितियों के हस्तक्षेप , और ईसके साथ ही लीजा के धार्मिक विश्वासो की जडता से विवश होकर उसने अपने वैयक्तिक सुख की हानि को स्वीकार कर लिया.तुर्गनेव को उससे सहानुभूति है परंतु निष्पक्ष भाव से ईस पात्र का विश्लेषण करने पर लेखक ईस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि एक नये ऎतिहासिक युग के व्यक्ति के रुप में लाव्रेत्सकी सर्वथा असफल रहेगा.उसमे ईच्छा-शकित,आत्म-बलिदान की भावना,दृढता का अभाव है.वह कुछ हद तक निष्क्रिय.तीन वर्ष के बाद तुर्गनेव ने प्रसिध्ध उपन्यास "पिता और पुत्र" मे एक नये ऎतिहासिक पात्र का चित्रण किया-कुलीन धराने से बाहर के बुध्धिजीवी बजारोव का.कुलीन धराना याने A Nest Of The Gentry उपन्यास के कुछ वाक्य :
* बदनसीब है वह दिल जिसने छोटी उम्र में प्रेम न किया हो !
*सबसे पहले और सबसे बढकर मै ईसे मानवी बनाना चाहता हूं.और सिर्फ मानवी नहीं बल्कि सादा और कठोर मानवी.
* शायद वह पहली बार महसूस कर रहा था कि वह कौन-सी चीज होती है जो जीवन को जीने लायक बना देती है.* मुसीबत झेलकर वीर बनना उसके भाग्य में बदा नहीं था.....हमे अपने प्रियजनों को पूरी तरह तभी समझ सकते है जब हम उनसे अलग हो जाते है.
* मेरे जीवन का सबसे अच्छा समय एक औरत से प्रेम करने में बीता * तुम आत्म-सुख के पीछे थे,तुम जीवन मे सुख चाहते थे,तुम सिर्फ अपने लिऎ जीना चाहते थे.....
* तुम सब महज पढे-लीखे काहिल हो,तुम्हे जर्मनो की कमजोरिंया मालूम है,तुम्हे मालूम है कि अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में क्या बुराई है,और तुम्हारी ईस तुच्छ जानकारी को तुम्हारे शर्मनाक निकम्मेपन को,तुम्हारी घटिया किस्म की काहिली को उचित ठहराने के लिए सबसे बडे साधन की तरह ईस्तेमाल किया जाता है,तुममें से कुछ लोग तो ईस पर फूले नहीं समाते कि वे बुध्धिमान लोगों की तरह पडे रहते है,कुछ भी नहीं करते,जबकि दुसरे लोग,बेवकूफ लोग जूतियां चटकाते रहते है. जी हां ! हमारे बीच कुछ ऎसे लाजवाब शरीफ लोग है.
* तुम्हारे अंदर आस्था नहीं है,वरना तुम्हें मालूम होता ; जहां आस्था नहीं होती,वहां ज्ञान भी प्रकट नहीं होता.मृत्यु किसी का ईंतजार नही करती और जीवन को भी ईंतजार नहीं करना चाहिये.
* यहां ! ईस समय ! रुस में ! जब हर आदमी को एक कर्तव्य पूरा करना है,भगवान के प्रति,देश के प्रति और खुद अपने प्रति,देश के प्रति और खुद अपने प्रति एक गंभीर उत्तरदायित्व निभाना है ! हम सो रहे है और समय चुपचाप बीतता जा रहा है ; हम सो रहे है...
* एक गरीब भिखारी दूसरे भिखारी को बहुत जल्दी दूर से पहचान लेता है परंतु बुढापे में उनके बीच मित्रता शायद ही कभी हो पाती है-और ईसमें कोई ताज्जुब की बात भी नहीं है : उनके बीच आपस में बांट लेने के लिए कोई भी चीज तो नहीं होती,आशाएं तक नहीं.
* उसने यह दावा किया मुसीबतों की आग मे तपकर वह निखर चुका है और उसी सांस में उसने कई बार यह भी दोहराया कि वह सुखी व्यक्ति है, और उसने अपनी तुलना हवा में स्वछंद विचरनेवाले पक्षियों और कुमुदनी के फूल से की.
* "मेरे तिन आखिरी शब्द याद रखना " अपना शरीर गाडी के बाहर निकालकर और उसे संतुलित रखते हुए चिल्लाकर बोला," धर्म,प्रगति, मानवता."
* नौजवानी में अयोग्य होना तो सहन किया जा सकता है ; परंतु बुढापे में असमर्थ हो जाना बहुत ही दु:ख की बात है,सबसे बुरी बात तो यह होती है कि व्यक्ति यह महसूस नहीं करता कि उसकी शक्तियां क्षीण होती जा रही है, बुढे को ईससे बहुत तकलीफ होती होगी.
* जो कुछ पूजा था मैनेंउसको फूंक दिया है,और पूज रहा हुं उसकोजो फूंक चुका हुं....
* परंतु सुख भी तो किसी को नहीं मिल रहा है,किसी जमाने में मैं मखियों से जला करती थी-मैं सोचती थी कि ईनका जीवन बडे मजे की है-फिर एक दिन मैंने उनमें से एक को रात के समय मकडी के चंगुल मे कराहते हुए सुना ; नहीं, मैनें सोचा ,ईनकी भी अपनी मुसीबतें होती है.
* उसमें वह शांती नही थी जो मृत्य मे मिलती है,लीजा जिंदा थी और कहीं बहुत दूर.....लोबान के लहराते हुए धुंए के बीच चलती-फिरती साधुनी की पोशाक में लिपटी उस धुंधली-धुंधली पीले चेहरेवाली आकृति में उस लीजा में नाक-नक्शे की कोई बात दिखायी नहीं दे रही थी जो किसी जमाने में उसकी प्रेमिका थी....ईन आठ वर्षो के दोरान आखिरकार वह अपनी जिंदगी के उस मोड पर मुड गया था जिसे बहुत से लोग बिना मुडे ही पार कर जाते है परंतु जिसके बिना कोई भी व्यक्ति पूरी तरह शरीफ आदमी नहीं बना रह सकती.....उसने स्व्यं अपने सुख और स्वार्थ के बारे में सोचना सचमुच छोड दिया था...बुढापे में दिल जवान रखना जैसे कि कुछ लोग कहते है, मुश्किल भी होता है और कुछ हास्यकर भी ; वह व्यक्ति बहुत संतुष्ट रह सकता है जिसने नेकी में अपनी आस्था,उदेश्य के प्रति दृढता और काम करने का संकल्प न खोया हो...* लाव्रेत्स्की बाग मे चला गया, उस जानी पहेचानी बेंच पर बैठ गया और घर के सामने अपने अपने ईस बेहद प्रिय स्थान से जहां उसने अंतिम बार आनंद और उल्लास की स्वर्णिम मदिरा से चमकते और छलकाते हुए चिरवांछित सुरापात्र को पकडने का व्यर्थ प्रयास किया था, वह एक बेघर यायावर अपने जीवन का सिंहावलोकन करने लगा और बाग के पार तैरकर आती हुई उस युवा-पीढी की उल्लास -भरी शोर-गुल की आवाजें जिसने उसका स्थान ले लिया था, उसके कानों मे आती रही.वह दिल में उदासी महसूस कर रहा था परंतु उसमें कोई कटुता या व्यथा नही थी : ऎसा तो बहुत कुछ था जिसका उसे खेद था परंतु ऎसा कुछ भी नहीं था जिस पर वह लज्जित हो. "स्फूर्तिमय यौवन,खेलो,आनंद मनाओ,फूलो-फलो", उसने सोचा और उसके ईस सोचने मे6 कोई कडवाहट नही था ; "तुम्हारा जीवन तुम्हारे सामने है और तुम्हारे लिए जीवन अधिक सुगम होगा ;तुम लोगों को हमारी तरह अपने लिए रास्ता खोजना नहीं पडेगा,संघर्ष नहीं करना पडेगा,अंधेरे मे बार-बार गिरकर उठना नहीं पडेगा ; हमें जीवित रहने की कोशिश में ही सदा जूझते रहना पडा-और हममें से कितने ही ऎसे थे जो जीवित भी नहीं रह पाये !-परंतु तुम्हें एक कर्त्तव्य निभाना है, काम करना है-और हम बूढे लोगों का आशीर्वाद तुम लोगो के साथ है.मेरे लिए, आज के बाद ,ईन अनुभवो के बाद , अब केवल तुम लोगों से अंतिम विदा लेना बाकी रह गया है-और निकट आते हुए अंत और प्रतीक्षा करते हुए ईश्वर को ध्यान में रखते हुए उदास भाव से परंतु किसी ईर्ष्या या दुर्भावना के बिना केवल यह कहना "मेरे एकाकी जीवन ! धीरे धीरे जल जाओ, व्यर्थ जीवन !" .
* "और अंत ? शायद निराश पाठक पूछेगा !" बाद मे लाव्रेत्स्की और लीजा का क्या हुआ ? तो ये उपन्यास का वांचन करो....

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father Goriot - बुढा गोरियो

फ्रास के प्रख्यात लेखक "बालजाक" ये उतम रचनाओ में से ऎक है, ये कथा एक सच्चे वैज्ञानिक की चेतना और साधना मिलती है, वह ईस सामाजिक जीवन की भयंकर अव्यव्स्था में एक व्यवस्था ढूंढ निकालना चाहता है,एक वैज्ञानिक और दार्शनिक का काम सत्य का निरुपण करना है, आज वर्तमान समय मे भारत की स्थिती है ऎसी ही है जिस तरह नवलकथा मे जो बताई है. ईसी नवलकथा के कुछ वाकय नीचे लिखा है और ओनलाईन ईस नवलकथा पढना है तो लींक भी है.
* योजेन रास्तीनाक उन नौजवानो में से था जिन्हे गरीबी कडी महेनत का आदी बना देती है, और जिन्हे जीवन के आरम्भ हीं मे ईस बात का आभास हो जाता है कि उनके माता-पिता ने उनके व्यकितत्व से बहुत सी आशाएं लगा रखी है.......
* उसका पेशा चाहे कुछ भी हो, उसे देखकर यह तो निर्विवाद सिध्ध था कि वह हमारे समाज की चक्की को चलाने वाले मजदूरों में से एक है, जिन्हे ईतना भी ज्ञान नही होता कि हम सेवा किसकी कर रहे है, जो सिर्फ सामाजिक मशीन के पूर्जे होते है ओर जिन्हे अप्रिय से अप्रिय काम भी करना पडता है अर्थात वह उन लोगों में से था, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके बिना काम नहीं चल सकता. पेरिस के फेशनेबिल ईलाके ईन चेहेरों से परिचित नहीं है.........
* उसके थूंकने अंदाज ही से पता चलता था कि वह ऎसा कठोर-हदय व्यकित है कि विपति से छुटकारा पाने के लिए वह कोई भी अपराध कर सकता है.......
* लेकिन वह उन लोगो में से थी,जो समीप वालों से तो सावधान रहते है ; लेकिन अजनबियों का जट विश्वास कर लेते है...
* "अगर गाडी में बैठे हुए, तुमपर कीचड की छींटे पडें तो तुम शरीफ आदमी ही कहलाओगें और अगर पैदल चलते कपडे लथपथ हो जाएं तो बदमाश समजें जाओंगें. अगर दुर्भाग्यवश तुम किसकी जेब से दो-चार आने उडा लो तो अदालत में लोगों के लिए तमाशा बन जाओगें. लेकिन अगर तुम लाखो चुरा सको तो दीवानखाने मे बैठे सत्य और सदाचार के देवता समजें जाओगें ओर फिर मजा यह है कि ईस प्रकार की नैतिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए तुम पुलिस और अदालतों को तीन करोड अदा करते हो, कैसी अदभूत स्थिति.
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तीन वर्ष -Three Years By Anton Chekhov

Three Years By Anton Chekhov.
तीन वर्ष : लेखक 'एंतोन चेखोव.

ये कथा आदर्श और यथार्थ के द्र्न्द्र से परिपूर्ण ऎक मर्मस्पर्शी उपन्यास है, जिसका कथानायक एक ऎसा नौजवान है जो संस्कारों की घुट्न ओर थोथे हवाई आदर्शो की दुनिया मे पला होने के कारण कभी अपने वातावरण से समझोता नही कर पाता. 'विवाह और प्रेम', 'प्रेम और विवाह', सुखी गार्हस्थ्य जीवन - आखिर ये सब भ्र्मात्मक विचार ही है जिनमें काफी समय तक उलझा रहता है, और अन्तत: ईस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि "व्यक्ति की खुशी के विचारो को हमेंशा त्याग देना चाहिए..सुख नाम कि कोई चीज नही है.." ओर तब वह पुराने ढर्रे के जीवन का आदी होते हुए भविष्य का ईंतजार करने लगता है ; क्योंकि कौन जानता है कि भविष्य के गर्भ मे कया छिपा है !"
ईसी उपन्यास का हिन्दी मे अनुवाद "मार्कण्डेय" जी ने. उपन्यास के कुछ वाकय :
* "ठीक है, संसार में सभी चीजों का अंत होता है," उसने धीरे से कहा और उसकी काली आंखें सिकुड्कर छोटी हो गयीं. "तुम प्रेम में फँसोगे और दु:ख भोगोगे और फिर उससे निकल भी आओगें,वह तुम्हारे प्रति बेवफा होगी, जेसा हर स्त्री जल्दी या बाद मे हो जाती है.तुम दु:ख भोगोगे,निराश होगें और फिर तुम भी उसके प्रति बेवफा हो जाओगें, परंतु जल्दी ही , वह समय भी आयेगा कि जब सब कुछ स्मृतियों का हिस्सा बन जायेगां; और तुम बहुत ठंण्डे दिल से उसके बारे मे बात करोंगें और ईस सबको बेंमानी समझने लगोगें.
*"मेरे प्यारे कोस्त्या, मै तुम्हे यह शुभ समाचार पहुँचा रहा हूं कि मै फिर प्रेम करने लगा हूं........मेरे प्रिय मित्र,सोचो ,मै प्रेम के मामले में कितना अभागा रहा हूं ! स्त्रियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में मुझे कभी भी सफलता नहीं मिली. मुझे यह दुबारा कहने में हार्दिक कलेश पहुंच रहा है कि मेरी जवानी बिना प्रेम के बीत गयीं,ओर अब 34 वर्ष की अवस्था में मेने जाना है कि प्यार क्या चीज है,ईसलिए मै कहता हूँ कि ईसे फिर से होने दो......
* यात्सेर्व विश्वविधालय के प्राध्यापकों के स्वर में बोलता रहा, "जलवायु,शक्ति,रुची और उम्र की विभिन्नता के कारण समानता भौतिक रुप से असम्भव है, परंतु एक सुसभ्य आदमी ईस असामनता को खतरे से हीन कर सकता है,जैसे उसने कच्छ और भालु के साथ किया है.हम सभी उस वैज्ञानिक के बारे मे जानते है,जिसने एक बिल्ली,एक चूहे,एक बाज और गौरैया को एक ही प्लेट मे खाने कि शिक्षा दी.मेरा ख्याल है कि आदमी के साथ भी शिक्षा वही करेगी,जीवन हमेंशा विकसित होता है.संस्कृति का अत्यधिक विकास हो रहा है ओर ईसमें सन्देह नही कि एक ऎसा भी समय आयेगा,जब उदाहरण के लिए,आज के फेकटरी मजदूर कि स्थिति उसी प्रकार बेकार हो जायेगी, जैसी आज जमींदार कि है,जबकि किसानो की लडकियाँ कुत्तों से बदली जाने लगेंगी."
"ईसके आने में बहुत समय लगेगा",कोस्त्या ने कुछ मुस्कराकर कहा "ईसके बहुत पहले कि रोथ्सचाईल्ड(फ्रांसीसी बेंकर) अपनी सोने की तिजोरियों को बेकार की समझे,ईस बीच मजदूर अपनी कमर झुकायें भूखों मर जायेंगें.नहीं जनाब, ईससे काम नही चलने का. हमें लडना चाहिए,अगर एक बिल्ली उसी प्लेट में खाती है,जिससे चूहा खाता है,तो आप क्या समझते है कि उसने अपने रास्ते की गलतियाँ समझ ली है ? ऎसी कोई बात नहीं है, ऎसा ईसलिए है कि उसे ऎसा करने के लिए लाचार कर दिया गया है."
*"अब भी मै मरना नही चाहता....विश्व में कोई ऎसा दर्शन नहीं है,जो मृत्यु के विचार के साथ मेरा समझौता करा सके....क्या तुम जीवन को प्रेम करते हो ?..."जहा तक मेरा प्रश्न है,में अपने को समझ ही नही पाया....मै हर रोज ज्यादा-से-ज्यादा आश्वस्त होता जा रहा हूं कि हम किसी महान विजय के किनारे पर है और में चाहता हूं कि मुझे ईसमें हिस्सा लेने का मौका मिले,मानो या ना मानो, मै विश्वास करता हूं कि ईस समय विकसित होनेवाली पीढी अनोखी है....."मै एक रसायनशास्त्री हूं और रसायनशास्त्र के ही अनुरुप सोचता हूं ओर रसायनशास्त्री के ही रुप में मरुंगा,वह कहता गया,"परंतु मै अति लोलुप हूं और पूरा संतोष प्राप्त करने के पहले ही मर जाऊँग.
* "प्रतिष्ठित परिवार ? " लेपतोव ने अपने गुस्से को दबाते हुए पूछा,"क्या कहना है प्रतिष्ठित परिवार का ! हमारे पितामह को जमींदारो ने अपनी जमीन में से निकाल फेंका था और हर सडा हुआ मामूली अधिकारीं उनके मुँह पर थूंक देता था.पितामह ने उसी तरह पिता को निकाल बाहर किया और पिता ने हमकों और तुमको,हम लोगों को ईस प्रतिष्ठित परिवार ने क्या दिया है ? किस तरह की शांती ,कैसा रकत हमें विरासत मे मिला है ? हम तीन वर्ष तक एक नीचे दरजे के पादरी की तरह मिथ्या प्रलाप करते घूमते रहे,और अब तुमने यह लेख लिखा है...यह गुलामो की तरह की मिथ्या बकवास ?और देखो, मेरे साथ क्या हुआ ? मेरे अन्दर कोई मुलायमियत,कोई शक्ति,कोई चरित्र और कोई साहस नही है. मै कोई कदम उठाते हुए डरता हूं कि कोई मुझे पीट न दे,मै ऎसे मामूली तुच्छ और बुध्धिहीन लोगों के आगे भी काँप जाता हुं,जो मानसिक और नैतिक दोनो दृष्टियों से मेरे सामने कुछ नही है.मै सडक पर, झाडु लगानेवालों,कुलियों,पुलिस के सिपाहियों-सबसे डरता हूं,क्योकि मेरे जन्म एक भयात्रांत स्त्री की कोख से हुआ है,जन्म से ही हमारे साथ दुर्व्यवहार हुआ और हमारे उपर आँखे तरेरी गयी.अच्छा होगा कि हमारे-तुम्हारे कोई बालक न हो.मै यह प्रतिष्ठित व्यापारी-परिवार ईश्वर को सौंपता हूं,जो हमारे साथ ही समाप्त होता है.
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Three Years By Anton Chekhov

The cossacks -कज्जाक

The Cossacks by Leo Tolstoy
कज्जाक"
कज्जाक" नवलकथा लियो तोल्स्तोय की सुंदर रचनाओ में से ऎक है,ईसी कथा का नायक जो के एक धनिक कुटुंब मे पाला-पोषा गया परंतु आखिर उनको धन से धुणा उत्पन होती हे ओर ये कज्जाक लोगो के गाँव चला जाता हे रहने के लिये.ईसी कथा के कुछ वाकय :* "मैं अब सुखी क्यों हुं ,और पहले मै किसलीयए जीता रहा हूं ? ..... "मै अपने लिये कितना कुछ मांगता था,कैसी कैसी मै योजनाएं बनाता था,लेकीन अपने को शर्मिंदा और दुखी करने के अलावा मैने अपने लिए ओर कुछ हासिल नही किया !......."सुख ईस बात मै कि दूसरो के लिए जिया जाये.यह स्वत:स्पष्ट है, मनुष्य में सुख की कामना निहित है ; सो वह न्यायसंगत है.ईस कामना की स्वार्थमय पूर्ति करते हुए,यानी अपने लिए धन-दौलत, यश,जीवन के आराम,प्रेम खोजते हुए, ऎसा हो सकता है कि परिस्थितियां ऎसी बन जाये कि ईन ईच्छाओं की पूर्ति असंभव होगी. ..."क्यो न दुसरो के लिए जिया जाये ? [104]* तुम लोग नही जानते कि सुख कया है और जीवन क्या है ? एक बार जीवन को उसके सारे अकृत्रिम सौंदर्य मे अनुभव करना चाहिये. [158]* आत्मत्याग सब बकवास है.यह सब अहंकार है,सुख से उचित ही वंचित लोगो के लिए एक शरण है,दूसरों के सुख से होनेवाली ईर्ष्या से बचने का उपाय है, दूसरो के लिए जीना,भलाई करना ! किसलिए ?....[162]
ओनलाईन कज्जाक नवलकथा पढो

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